मृत्यु का सच – जानिए भगवान श्री राम ने मृत्यु प्राप्ति के लिए क्या किया!
जन्म और मृत्यु सृष्टी का नियम है.
जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु होनी निश्चित है.
यह चक्र निरंतर काल से चला आ रहा है, लेकिन इस चक्र में जब भगवान विष्णु के रूप में भगवान्मृ श्री राम के मृत्यु का समय आया तो यह चक्र और प्रकृति का नियम टूट रहा था.
भगवान राम का जन्म इंसान के रूप में हो तो गया, लेकिन भगवान राम की मृत्यु होना असंभव हो रहा था. परन्तु काल चक्र को बनाए रखने और चलाने के लिए जरुरी था कि प्रकृति का नियम ना रुके और ना टूटे.
इसलिए भगवान राम ने अपने मृत्यु के लिए कुछ ऐसा किया जो आपको हैरान कर देगा.
तो आइये जानते है क्या किया भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई –
भगवान राम ने त्रेतायुग के सारे काम कर लिए थे. उनकी सारी लीलाएँ समाप्त हो गई थी. उनका धरती में जीवन अवधि समाप्त होने का समय आ चुका था. भगवान राम की मृत्यु निकट आ रही थी.
लेकिन समय सामप्त होने के बाद भी काल देवता यमराज भगवान राम के समीप नहीं आ पा रहे थे. उनको अपने साथ ले जा नहीं पा रहे थे. क्योकि राम दूत हनुमान जो स्वयं भगवान शंकर के रूप थे. वह भगवान राम के प्राण रक्षक थे.
हनुमान शंकर जी का रूप है. शंकर साक्षात महाकाल का रूप है. महाकाल से उसके आराध्य और भगवान राम के प्राण छिनकर ले जाने की हिम्मत ना यम में थी और ना किसी और देवता में थी.
अब समस्या यह थी कि भगवान राम की मृत्यु की घडी निकट आ चुकी थी. लेकिन उनके प्राण रक्षा के लिए हनुमान जी पहरेदार बनकर बैठे थे.
काल चक्र और समय चक्र को आगे बढ़ाने के लिए भगवान राम की मृत्यु होना और उनका स्वर्ग धाम जाना ज़रूरी था. ऐसे में भगवान राम ने एक उपाय निकला और अपनी मुद्रिका यानी कि अंगूठी महल के एक छेद में गिरा कर हनुमानजी को खोजने के लिए भेज दिया.
भगवान राम की आज्ञा पालन के लिए हनुमाजी सूक्ष्म रूप लेकर उस छेद से अंदर मुद्रिका की खोज में पाताल लोक तक चले गए.
पाताल लोक में हनुमान की भेट नागो के राजा वासुकी से हुई. उसने भेट करते हुए हनुमानजी ने अपने पाताल लोक आने का कारण राजा वासुकी को बताया.
वासुकी हनुमान की बात सुनकर, हनुमान जी को नाग लोक उस स्थान पर ले गए जहाँ मुद्रिकाओं (अंगूठियों ) का पहाड़ बना हुआ था. वासुकी ने हनुमानजी से कहा कि आपको यहाँ आपके प्रभु की मुद्रिका जरुर मिल जायेगी. आप इन मुद्रिकाओं में से भगवान राम की मुद्रिका पहचान कर ले जाइए.
मुद्रिकाओं के पहाड़ में भगवान राम की मुद्रिका तलाश करना हनुमान जी को बहुत मुश्किल दिख रहा था, परन्तु फिर भी हनुमान जी ने एक मुद्रिका उठाई और वह मुद्रिका भगवान राम की थी. फिर हनुमान ने दूसरी मुद्रिका को देखते हुए उसको उठाया तो वह भी भगवान राम की ही थी. धीरे धीरे हनुमान जी ने अनेक मुद्रिका देखी तो सब उसके प्रभु श्री रामजी की ही थी.
इन सबको देखकर हनुमानजी आश्चर्य से भर गए और सोचने लगे कि ये कैसा रहस्य है .
तब नागो के राजा वासुकी ने इस रहस्य को उजागर करते हुए हुनमान को बताया कि समय चक्र और काल चक्र अपनी गति से घूम रहा है.
जो आया है वह जाएगा और जो जन्मा है वह मरेगा जरुर. परन्तु आप उस समय और काल चक्र के नियम बदल रहे थे. इस चक्र में भगवान राम की मृत्यु समय भी निश्चित हो चुकी थी. आप उस कालचक्र में बाधक बन रहे थे.
अतः आपको मुद्रिका के बहाने पाताल भेज कर भगवान राम ने मृत्यु को प्राप्त कर, समय और काल चक्र के नियम को बनाए रखा.
इस तरह भगवान राम की धरती यात्रा समाप्त हुई और वो स्वर्ग धाम में प्रस्थान कर गए.
इस तरह से भगवान राम की मृत्यु हुई. हम ये भी कह सकते है कि भगवान राम ने इस तरह से मृत्यु प्राप्त की.