महाभारत काल में 18 दिन तक चले युद्ध के बाद कौरववंश का पूरी तरह नाश हो गया था और पांडवो के वंश में पाँच भाई के अलावा और कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं बचा था.
धृतराष्ट्र और गांधारी अपने सभी पुत्रों की मृत्यु से इतने अधिक व्यथित थे कि उन्होंने श्रीकृष्ण को इस पुरे घटनाक्रम का दोषी क़रार दिया था.
महाभारत युद्ध के बाद जब पांडवों में से युधिष्टिर का राज्याभिषेक हो रहा था, तब वहां मेहमानों में धृतराष्ट्र अपनी पत्नी और कौरवों की माँ गांधारी के साथ वहां मौजूद थे. अपने पुत्रो को खो देने के बाद स्वाभाविक था कि माता-पिता के दिल में उनसे बिछड़ने का दुःख रहा होगा, लेकिन जैसे ही इस समाहरों में श्रीकृष्ण भी पहुचे कौरवो की माँ गांधारी अपने क्रोध पर नियंत्रण नही रख पाई और भगवान् कृष्ण को देखते ही यह श्राप दे डाला कि जिस तरह भाइयों के बीच युद्ध करा के आपने मेरे पुत्रों को मृत्यु तक पहुचाया हैं उसी तरह आप के कूल का भी नाश होगा.
युधिष्टिर के राज्याभिषेक के वक़्त श्रीकृष्ण को मिले श्राप से कान्हा तुरंत द्वारिका लौट आये और आते ही सभी यदुवंशियों को यह आदेश दिया कि हम अभी प्रयाग की ओर प्रस्थान करेंगे. आप सभी लोग अपने साथ अपनी जिंदगी से जुड़ी आवश्यक वस्तु साथ ले चलियें.
संकटकाल से बचकर प्रयाग पहचे सभी यदुवंशी जब यहाँ रुक कर विश्राम कर रहे थे तभी श्रीकृष्ण के सारथी सात्यिकी और कृतवर्मा के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया और सात्यिकी ने क्रोध में आकर कृतवर्मा का सर काट डाला.
सात्यिकी और कृतवर्मा के बीच हुए इस युद्ध ने इतना बड़ा रूप ले किया की पूरी यदुवंश में गृहयुद्ध छिड़ गया और सभी यदुवंशी एक दुसरे को मृत्यु के घाट उतारनें लगे. इस युद्ध का परिणाम यह हुआ कि श्रीकृष्ण अपने पुत्र प्रध्युम और उनके सारथी सात्यिकी समेत पूरा का पूरा यदुवंश ख़त्म हो गया और बलराम के साथ श्रीकृष्ण बेबस होकर इस पूरी घटना को देखते रहे.
अपने कूल का नाश देखकर बलराम समुद्र में शेषनाग के अवतार में वापस जाकर अपनी देह त्याग कर दिया और श्रीकृष्ण वन में जाकर ध्यान में लीन हो गए. भगवान् के ध्यान के समय ही उस वन में एक भील ने हिरन के भ्रम में श्रीकृष्ण के तलवे पर विषबुझा तीर मार दिया लेकिन जैसे उसने हिरन की जगह श्रीकृष्ण को पाया तो ग्लानी भाव से क्षमायाचना करने लगा. भगवान् श्रीकृष्ण ने मुस्कुरा कर बहेलिये से कहा कि तुमने मेरे मन का कार्य किया हैं और इसके लिए तुम स्वर्ग को प्राप्त करोगे. तभी अपने सारथी दारुक के हाथों श्रीकृष्ण ने द्वारिका सन्देश भिजवाया कि यदुवंश का नाश हो चूका हैं और सभी यदुवंशियो से कह दो की द्वारिका नगरी छोड़ कर कही और प्रस्थान करे क्योकि द्वारिका जलमग्न होने वाली हैं.
कहा जाता हैं कि त्रेता युग में जिस तरह श्रीराम ने बाली का छुप कर वध किया था वैसी ही मृत्यु द्वापरयुग में उन्होंने अपने लिए तय किया था.
…और इस तरह श्रीकृष्ण का वंश खत्म हुआ.
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