दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के खिलाफ अगर अन्ना हजारे और उनके खुद के साथी योगेन्द्र यादव हैं तो जरुर दाल में कुछ ना कुछ काला है.
अरविन्द केजरीवाल जो हमेशा दूसरों पर भ्रष्टाचार काआरोप लगाते रहते हैं उनके खिलाफ भी 2012 में दिल्ली के उच्च न्यायालय के अंदर एक जनहित याचिका दायर की गयी थी. सबसे पहले तो आपको बता दें कि अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्दकेजरीवाल और आम आदमी के कार्यकर्ताओं को इस खबर से मिर्च लगे तो वह लेखक राकेश सिंह द्वारा लिखी हुई केजरीगाथा पुस्तक को जरुर पढ़ें और यहाँ केजरीवाल पर लगाये गये आरोपों के जवाब भी तथ्यों के द्वारा दें.
2012 में दिल्ली के उच्च न्यायालय के अंदर एक जनहित याचिका में लिखा गया था कि कबीर संस्था को जो विदेशों से धन मिलता है उसकी जांच जल्द से जल्द होनी चाहिए.
आपको बता दें कि यह कबीर संस्था अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के नाम पर रही थी. इस कबीर संस्था के बारें में ‘द पत्रिका.कॉम’ लिखता है कि-
“कबीर की पड़ताल से इन सबका मजबूत विदेशी तंत्र भी समझ में आ जाता है. जिस कबीर ने अगस्त 2005 में काम करना शुरू किया, उसे फोर्ड फाउंडेशन ने जुलार्इ 2005 में ही 1.72 लाख डॉलर देदिए थे. गृह मंत्रालय ने इसकी पूर्व अनुमति 10 जून, 2005 को दे दी थी. आपको पता होना चाहिए कि इस समय देश में किसकी सरकार थी. इससे केजरीवाल और सिसोदिया की कांग्रेस सरकार में हैसियत का अनुमान लगाया जा सकता है.”
शायद यही कारण है कि केजरीवाल गृह मंत्री को उनकी हैसियत बताने से भी गुरेज नहीं करते. गृह मंत्री कबीर के खिलाफ जांच रिपोर्ट होने के बाद भी कार्रवार्इ की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं.’’
ग्रह मंत्रालय को यह रिपोर्ट भेजी गयी थी–
इसके बाद न्यायालय ने कबीर संस्था की जाँच करने का आदेश दिया था और तब जब जांच हुई तो पता चलता है कि 2005 से 2012 तक कबीर को 2 करोड़ 20 लाख विदेश से चंदा मिला था. यह जो पैसा था इसमें से 80 लाख प्रशासनिक मद में खर्च हुए थे. कबीर संस्था में जो लोग काम करते थे उनका कोई नियुक्ति पत्र भी नहीं होता था. कागज पर नाम थे और कागज के नाम सेलरी लगातार ले रहे थे. अरविन्द केजरीवाल का दिमाग देखिये कि कोई नियुक्ति पत्र और भर्ती के बिना ही इनको सैलरी समय से दे रहे थे. अब एक कम बुद्धि का इंसान भी बता सकता है कि यह पैसा कहाँ जा रहा था.
केजरीवाल गरीबों पर कभी भी पैसा खर्च नहीं करते हैं. असल में कबीर संस्था का भी 1 करोड़ 85 लाख प्रचार-प्रसार में खर्च हुआ बताया गया था.
इतना ही नहीं मनीष सिसोदिया अपनी पत्नी को 12000 हजार रुपैय किराए के रुप में संस्था से दिलाते थे. जिस संस्था को मनीष चलाते थे उसके कार्यालय का रेंट इनकी पत्नी को जाता था. मनीष सिसोदिया 18 हजार रुपैय की गाड़ी बुक कराते थे कि वह देहरादून जा रहे हैं जबकि वह देहरादून की जगह बहराइच जाते थे. बहराइच में एक संस्था को केजरीवाल और सिसोदिया क्यों धन देते थे इसका जवाब तो यही लोग दे सकते हैं किन्तु जिस हिसाब से धन बहराइच की संस्था को दिया जाता था वह गैर–क़ानूनी जरुर बताया गया है. फिल्म बनाने के नाम पर भी कबीर संस्था पैसे खर्च किया करती थी. असल में जब ग्रह मंत्रालय को यह रिपोर्ट बनाकर भेजी गयी तब भी कांग्रेस सरकार ने अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पर कार्यवाही नहीं की थी.
केजरीवाल के जीवन पर यह पुस्तक बड़े-बड़े दाग लगा रही है जिनका जिक्र हम आगे लेखों में करेंगे.
यदि केजरीवाल को लगता है कि उनपर लगाये आरोप झूठे हैं तो उनको इस पुस्तक के खिलाफकार्यवाही जरुर करनी चाहिए.
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