इन्सान अब इन्सान ना रहा – भगवान अब भगवान ना रहा,
जिन पे हमें फक्र था, वो हिंदुस्तान… अब हिंदुस्तान ना रहा…
पांच तारक होटलों में नाचती है कृष्ण की वो गोपियाँ,
बंदूकों की नालियों ने पहनी है गांधीजी की टोपियाँ,
हुकूमत और दौलत के लिए ईमान अब ईमान ना रहा…..
जिन पे हमें फक्र था, वो हिंदुस्तान…
अब तो हम आज़ाद है – हमें मिली है आजादी,
कोई किसीका खून पी ले या फैलाये बर्बादी,
ये आजादी का मतलब समझना इतना आसान ना रहा…
जिन पे हमें फक्र था, वो हिंदुस्तान…
गंदी नालियाँ बन गयी है गंगा – यमुना – सरस्वती,
कीड़ों की तरह जी रही है उनमें हमारी संस्कृति,
बाइबल – गीता और कुरान का नामोनिशान ना रहा…
जिन पे हमें फक्र था, वो हिंदुस्तान…