वानर प्रजाति का जीवाश्म – वैज्ञानिक रोज नित्य नई खोजों में लगे हैं और इसके साथ ही पुराने इतिहास की खोज में लगे हैं। क्योंकि अब भी यह एक बड़ा प्रश्न बना हुआ है कि आखिर इंसान आए कहां से हैं और इसका जवाब अब तक वैज्ञानिकों ने सटीकता से खोजा नहीं है।
हर किसी के अपने मत है और हर किसी के पास अपने तर्क है। इसी खोज में एक नई खोज जोड़ गई है। हाल ही में वैज्ञानिकों को सबसे छोटी वानर प्रजाति का जीवाश्म मिला है जो लगभग 1.25 कोरड़ वर्ष पुराना है।
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने की खोज
हर किसी को मालूम है कि इंसान का उद्गम वानरों से हुआ है। लेकिन अब तक वैज्ञानिकों का मत था कि हमारे पूर्वज वानर काफी लंबे होते थे। धीरे-धीरे जलवायु परिवर्तन के कारण इंसानों की लंबाई घटते गई। हाल ही में अमेरिकी वैज्ञानिकों को सबसे छोटे वानर प्रजाति का जीवाश्म मिला है।
अमेरिकी वैज्ञानिकों को एक वानर प्रजाति के दांत का 1.25 करोड़ साल पुराना जीवाश्म मिला है जिसके मुताबिक यह दुनिया में अब तक की सबसे छोटी वानर प्रजाति हो सकती है। विलुप्त हो चुकी इस ‘सिमिलस मिन्यूटस’ प्रजाति के वानरों का वज़न सिर्फ 3.6 किलोग्राम था। बतौर वैज्ञानिक, जीवाश्म से पता चला है कि ये बंदर पत्तियां खाते थे।
केन्या में मिले ये जीवाश्म
इस जीवाश्म को ‘सिमिलस मिन्यूटस’ नाम से जाना जाता है। गौरतलब है कि यह बहुत ही पुराना जीवाश्म है और अब तक पाया गया सबसे छोटा जीवाश्म है। यह अमेरिकी वैज्ञानिकों को केन्या के Tugen Hills में मिला है। यह एक बड़ी सफलता मानी जा रही है क्योंकि इससे पहले बड़े लंबाई के ही वानरों के जीवाश्म मिले थे। इससे वैज्ञानिक यह मालूम कर सकेंगे कि हमारे पूर्वज वाकई में कितने लंबे थे।
खोज चुके हैं ‘होमो नलेडी’ नाम की इंसान की नई प्रजाति
वैज्ञानिक नित्य नए तरह के खोजों में लगे रहते हैं। इससे पहले वैज्ञानिकों ने ‘होमो नलेडी’ नाम की इंसान की नई प्रजाति खोजी थी। यह खोज 2015 में वैज्ञानिकों ने की थी। यह खोज भी दक्षिण अफ्रीका में हुई की। केन्या भी दक्षिण अफ्रीका देश है।
वैज्ञानिकों ने दक्षिण अफ्रीका की एक गुफा से मिले 15 कंकालों के आधार मनुष्य (होमो सेपियंस) की नई प्रजाति खोजने का दावा किया है। ‘होमो नलेडी’ नाम की इस प्रजाति में आदिम और आधुनिक मानव जाति के मिश्रित लक्षण पाए गए हैं। शोधकर्ताओं का दावा है कि यह खोज हमारे पूर्वजों के बारे में विचारों को बदल कर रख देगी।
तीस लाख वर्ष पहले रहते थे
इस शोध से जुड़े वैज्ञानिक प्रोफेसर ली बर्गर ने कहा था कि ये आधुनिक मानव की प्रारंभिक प्रजातियों में से (जीनस होमो) एक हो सकते हैं। मतलब की हमारे पूर्वज हो सकते हैं। ये संभवत: तीस लाख वर्ष पहले अफ्रीका में रहते होंगे। जर्नल एलिफि में प्रकाशित शोध के अनुसार, संभवत: होमो नलेडी रीति-रिवाजों के जानकार थे और संकेतों के माध्यम से विचारों के आदान-प्रदान में सक्षम थे। कंकालों की जांच में उनकी खोपड़ी आधुनिक मानव जैसी पाई गई है। हालांकि उनकी मस्तिष्क की कोटरी आधुनिक मनुष्य की तुलना में छोटी और गोरिल्ला जैसे वानरों जैसी है। कलाई और हथेली भी आधुनिक मानव की तरह हैं, लेकिन अंगुलियां ज्यादा मुड़ी हुई हैं।
वानर और मनुष्य के बीच की कड़ी
बर्गर ने इस होमो नलेडी को वानर और मनुष्य के बीच की कड़ी बताया था। देखते हैं कि इस छोटे जीवाश्म के बारे में वैज्ञानिकों की क्या राय है।
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