1947 के बाद से देश और दुनिया में काफी बदलाव आया है। विकास के नाम पर धरती पर बहुत अत्याचार किए गए हैं जोकि अभी भी जारी हैं। ग्लोबल वार्मिंग इसी का नतीजा है। बढ़ती जनसंख्या के कारण धरती पर मनुष्यों का बोझ बढ़ता जा रहा है और इस वजह से मनुष्यों और धरती को बहुत नुकसान हो रहा है।
आज हम आपको तस्वीरों के ज़रिए दिखाते हैं कि 1947 से अब तक धरती कितनी बदल चुकी है और इसमें कितने बदलाव आए हैं।
शहरीकरण का असर
आप तो जानते ही हैं कि शहरीकरण के चक्कर में कितना कुछ गलत हो रहा है। ये तस्वीर चीन के बिन्होई शहर में हुए बड़े पैमाने पर शहरीकरण को दिखाती है। 1990 से बिन्होई को एक दलदल वाले क्षेत्र से बदलकर एक विशाल आर्थिक क्षेत्र बना दिया गया है। आज यह कई एयरोस्पेस, रसायन और अन्य विनिर्माण कंपनियों का केंद्र है।
कृत्रिम द्वीप बनाए गए
समुद्र तटों पर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कृत्रिम तटों को बढ़ावा दिया गया है। अब कई तट मानव निर्मित हैं जिन्हें पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बनाया गया है। कहां एक समय पर दुबई की जमीन रेगिस्तान थी और आज यहां पर समुद्र तट आ गए हैं।
टेक्नोलॉजी
टेक्नोलॉजी की तो बात ही ना की जाए तो बेहतर है। क्योंकि आप भी जानते हैं कि धरती पर इंसानों ने ट्रेक्नोलॉजी को लेकर कितना विकास कर लिया है। अगर आप टेक्नोलॉजी की मदद से धरती से करोड़ों मील दूर दूसरे ग्रहों पर भी जा सकते हैा। पहले जहां लैंडलाइन फोन हुआ करते थे वहीं अब हर किसी के हाथ में समा जाने वाला सेलफोन आ गया है।
सोशल मीडिया
धरती पर पहले एक-दूसरे से बात करने के लिए खत भेजे जाते थे लेकिन अब तो सब कुछ सोशल मीडिया पर ही मिल जाता है। अब आप सोशल मीडिया पर ही अपनों की खैर-खबर ले सकते हैं और उन्हें देख सकते हैं। 20 साल पहले वाला मौखिक संचार नाटकीय रूप से घट गया है जब लोग आमने-सामने बैठकर बात किया करते थे।
फैशन में बदलाव
धरती पर सबसे ज्यादा और बुरा बदलाव शायद कपड़ों को लेकर देखने को मिला है। पहले लड़कियां पूरी जींस पहना करती थीं। फिर कैप्री आई, उसके बाद घुटनों तक की पैंट आई और अब इनकी जगह शॉर्ट्स ने ले ली है। अगर ऐसा ही रहा तो आगे जाकर शायद कपड़े पहनने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। पहले के समय में कपड़ा और कपड़ों की शैलियां सांस्कृतिक पहचान के सबसे स्पष्ट संकेतकों में से एक थे। पिछले कई दशकों में वैश्वीकरण के तेजी से बढ़ने से वैश्विक संस्कृतियों में फैल गया और अर्थव्यवस्था, संस्कृति और दैनिक जीवन के दर्पण में बदलाव आया।
इस तरह हमारी धरती एक मॉडर्न धरती हो गई है जिस पर ऐशो-आराम के सारे साधन उपलब्ध हैं। आप चाहें भी तो अब पीछे वाली पृथ्वी को देख नहीं सकते हैं। 1947 में जब देश आजाद हुआ था तब की पृथ्वी और आज की परिस्थिति में काफी फर्क आ गया है। कम से कम तब धरती का इतना शोषण नहीं किया जाता था जितना अब हो रहा है।
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