इंसान के जीवन से दुखों को हरनेवाले और सुखों का भंडार भरनेवाले विघ्नहर्ता गणेश को कई नामों से जाना जाता है.
भगवान गणेश का मस्तक गज यानि हाथी का है इसलिए भक्त उन्हे प्यार से गजानन, गजमुख भी कहकर पुकारते हैं. श्री गणेश का यह स्वरुप जितना मनमोहक है, उतना ही मंगलकारी भी है.
भगवान गणेश के गजानन बनने और सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय बनने को लेकर कई तरह की पौराणिक कथाएं प्रचलित है.
लेकिन मन में एक विचार यह आता है कि भगवान गणेश का मस्तक कैसे कटा ?
और उनका असली मस्तक आखिर कहां गया होगा.
दरअसल श्री गणेश के जन्म और उनके मस्तक कटने को लेकर दो तरह की पौराणिक कथाएं हैं, जिसे हम जानने की कोशिश करेंगे.
शापित शनि की वजह से कटा मस्तक
पहली धारणा के मुताबिक जब माता पार्वती ने श्री गणेश को जन्म दिया, तब देवलोक के सभी देवी-देवता उनके दर्शन के लिए कैलाश पहुंचे. इसी दौरान शनिदेव भी वहां पहुंचे जो शापित थे. शनिदेव को उनकी पत्नी ने श्राप दिया था कि वो जिसे भी अपनी नज़र से देखेंगे उसका अनिष्ट हो जाएगा. इसलिए जैसे ही शनि देव की नज़र गणेश पर पड़ी, उनकी शापित दृष्टि से गणेश का मस्तक धड़ से अलग हो गया.
भगवान शिव ने काटा मस्तक
दूसरी मान्यता के मुताबिक माता पार्वती ने अपने शरीर के उबटन से एक बालक का निर्माण किया और उसमें प्राण डाल दिए. उबटन से बने बालक से पार्वती ने कहा कि तुम मेरे पुत्र हो. तुम मेरी ही आज्ञा का पालन करना.
फिर पार्वती ने गणेश से कहा कि मैं स्नान करने जा रही हूं. कोई भी अंदर न आने पाए. कुछ देर बाद वहां भगवान शंकर पहुंचे, लेकिन श्री गणेश ने उन्हे अंदर जाने से रोक दिया, इससे क्रोधित होकर भगवान शंकर ने गणेश का मस्तक काट दिया.
जब पार्वती ने ये देखा तो वो बेहद गुस्से में आ गई. उनके गुस्से को शांत करने के लिए भगवान शंकर ने कटे मस्तक की जगह हाथी का मस्तक लगा दिया.
चंद्रलोक में चला गया असली मस्तक
इन दोनों कथाओं के अनुसार गणेश का सिर धड़ से अलग होने के बाद उड़कर सीधे चंद्रलोक में चला गया. इस वजह से उनके असली मस्तक की जगह हाथी का मस्तक लगाना पड़ा और भगवान शिव के साथ मौजूद सभी देवी-देवताओं ने गणेश को प्रथम पूजनीय होने का आशिर्वाद दिया.
ऐसी मान्यता है कि श्री गणेश का असली मस्तक चंद्रलोक में है.
यही वजह है कि आज भी संकट चतुर्थी तिथि पर चंद्रदर्शन और अर्घ्य देकर श्री गणेश की उपासना को खास महत्व दिया जाता है.