जानिए कहानी बालक ध्रुव के ध्रुव तारा बनने की-
प्राचीनकाल की बात है जब सभी देवतागण पृथ्वी पर भ्रमण किया करते थे।
उस समय पृथ्वी के एक हिस्से में राजा उत्तानपाद का राज हुआ करता था। उनकी दो पत्नियाँ थी. एक सुनीति और दूसरी सुरुचि। उत्तानपाद के दो बेटे थे. सुनीति से ध्रुव और सुरुचि से उत्तम। सुनीति बड़ी रानी थी लेकिन उत्तानपाद को सुरुचि से अधिक प्रेम था। एक बार जब राजा उत्तानपाद ध्रुव को अपनी गोद में लेकर खिला रहे थे तभी सुरुचि वहां पहुंची. उसने ईर्ष्या से ध्रुव को राजा की गोद से नीचे उतार दिया और कहा राजा की गोद में वही सिर्फ बालक बैठेगा जो मेरी कोख से उत्पन्न हुआ हो।
बालक ध्रुव को गुस्सा आ गया और वह भागते हुए अपनी माँ सुनीति के पास पहुँचा और सारी बात बताई।
सुनीति बोली बेटा तेरी सौतेली माँ सुरुचि से अधिक प्रेम के कारण तुम्हारे पिता हम लोगों से दूर हो गए है. तुम भगवान को ही अपना सहारा बनाओ। माता के वचन से ध्रुव को कुछ ज्ञान उत्पन्न हुआ और वे पिता का घर छोड़ कर चले गए।
रास्ते में ऋषि नारद से उनकी भेंट हुई. नारद ने बालक ध्रुव को समझाया कि वे घर लौट जाए लेकिन ध्रुव नहीं माना तब नारद ने ध्रुव के दृढ़ संकल्प को देखते हुए उसे तंत्र-मन्त्र की दीक्षा दी और वहां से चले गये।
इस तरह बालक ध्रुव यमुना नदी के तट पर जा पहुंचा और भगवान नारायण की तपस्या आरम्भ कर दी।
ध्रुव की तपस्या का तेज तीनों लोकों में फैलने लगा और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ की ध्वनि वैकुंठ में भी गूंज उठी। बालक ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान नारायण भी योग निद्रा से उठ बैठे और ध्रुव को दर्शन देने के लिए प्रकट हुए।
नारायण बोले हे, राजकुमार तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर मैं तुम्हे वह लोक प्रदान कर रहा हूँ जिसके चारों ओर ज्योतिष चक्र घूमता है और जिसके आधार पर सभी ग्रह नक्षत्र भ्रमण करते है। प्रलयकाल में भी जिसका नाश नहीं होगा। सप्तऋषि भी नक्षत्रों के साथ जिसकी प्रदिक्षा करेंगे तुम्हारे नाम पर वह लोक ध्रुव कहलायेगॉ। इस लोक में तुम छत्तीस सह्त्र वर्ष तक तुम पृथ्वी पर शासन करोगे और समस्त प्रकार के सर्वोत्तम ऐश्वर्य भोग कर अंत समय में तुम मेरे लोक को प्राप्त करोगे।
बालक ध्रुव को इस तरह वरदान देकर नारायण वैकुंठ लौट गए।
नारायण के वरदान के स्वरुप बालक ध्रुव समय पाकर ध्रुव तारा बन गया। आज भी आसमान में ध्रुवतारा देखा जा सकता है जिसके चारों तरफ गृह-नक्षत्र भ्रमण करते है।