जब भारत देश आजाद हुआ उस समय हमारा अपना कोई कानून नहीं था.
आजाद देश को जरुरत थी अपने कानून की. क्योंकि आजादी पा लेना हीं सब कुछ नहीं होता, जब तक कि हमारे खुद के नियम व कानून हमारे देश को संचालित ना करे.
इसलिए भारत का खुद का संविधान बनाया गया. संविधान को बनाने में भारत को कई अड़चनों का सामना करना पड़ा.
भारत का संविधान –
देश के आजाद होने से कई साल पहले से ही संविधान बनने की प्रक्रिया शुरु हो चुकी थी.
1857 की क्रांति के बाकी सिपाहियों ने भारत का संविधान को बनाने की पूरी कोशिश की, लेकिन जब तक भारत का संविधान बनता उससे पहले उनका विद्रोह समाप्त हो गया. जिसके कारण संविधान बनने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई.
अंग्रेजों ने 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट बनाया. भारत वासियों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया. बल्कि देशवासियों की सोच से काफी हटकर था. और यही कारण था कि मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच काफी दूरियां पैदा होने लगी.
डॉक्टर तेज बहादुर सप्रू ने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 1945 में सभी पार्टियों की सहमति से संविधान का एक प्रारूप तैयार किया था.
लेकिन भारत छोड़ो आंदोलन और आजाद हिंद फौज के कारण भारत पर राज करने का सपना अंग्रेजों का पूरी तरह चकनाचूर हो चुका था. और इसी दिनों विस्टन चर्चिल जोकि प्रधानमंत्री थे, चुनाव में उनकी हार हो गई. और नए प्रधानमंत्री बने क्लेमेंट अट्टेली. प्रधानमंत्री बनते हीं क्लेमेंट अट्टेली ने मुस्लिम लीग और नए संविधान को अलग अधिकार देने पर काम करना शुरू कर दिया. जिसके चलते उनके कैबिनेट के तीन मंत्री हिंदुस्तान भेजे गए.
इसे कैबिनेट मिशन के रूप में जाना गया.
शिमला में बैठक की शुरुआत हुई और कांग्रेस की तरफ से उनके अध्यक्ष मौलाना आजाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, पंडित जवाहरलाल नेहरू, खान अब्दुल गफ्फर खां थे. तो वहीं मुस्लिम लीग से लियाकत अली खां, जिन्ना, नवाब इस्माइल खां, और सरदार नीशतर तथा रजवाड़ों की तरफ से नवाब मोहम्मद हमीदुल्लाह बैठक में शामिल हुए थे. लेकिन इस बैठक का निष्कर्ष नहीं निकल पाया. अतः कैबिनेट मिशन असफल रहा. लेकिन कुछ समय बाद दोबारा से बातचीत हुई, और 16 जून 1946 को प्रस्ताव पारित हुआ कि दोनों देशों को विभाजित कर दिया जाए. उसके बाद नया संविधान बनना तय हुआ.
भारत की संविधान सभा पहली बार 19 दिसंबर 1946 को एकत्रित हुई.
इस सभा में सभी नेता मौजूद हुए लेकिन कायदे – ऐ – आजम मोहम्मद अली जिन्ना और महात्मा गांधी मौजूद नहीं हुए थे. संविधान सभा के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में डॉक्टर सच्चिदानंद को चुना गया क्योंकि सच्चिदानंद सबसे सीनियर थे और डाक्टर राजेंद्र प्रसाद को स्थाई अध्यक्ष के रुप में चुना गया.
डॉक्टर जवाहरलाल नेहरू ने संविधान की नीव 13 दिसंबर 1946 को रखी. उन्होंने संविधान का संपूर्ण खाका बना लिया था. इसके अंतर्गत पूरे भारत देश के सभी रजवाड़ों की संपत्ति को समाप्त कर उसे भारतवर्ष का हिस्सा बनाने का प्रस्ताव भी था और संविधान के इस सबसे महत्वपूर्ण प्रस्ताव को 22 जनवरी 1947 को पास कर दिया गया. इसका रजवाड़ों ने और जिन्ना ने खुलकर विरोध भी किया.
काफी जद्दोजहद के बाद अप्रैल 1947 के अंत तक दूसरी सभा की बैठक हुई. कई राजाओं ने कांग्रेस को समर्थन दिया. इसके बाद 3 जून 1947 को इसकी घोषणा कर दी गई कि भारत बंगाल और पंजाब का विभाजन होगा. 14 जुलाई 1947 को जब बैठक हुई तो उस बैठक में मुस्लिम लीग के लोग भी शामिल हुए थे. लेकिन वो सभी बंटवारे के बाद भी भारत में ही रहने वाले थे. इसी सभा में देश के तिरंगे को भी प्रस्तुत किया गया. जिसका संपूर्ण संविधान सभा ने समर्थन भी किया.
अब देश दो भागों में बंट चूका था. अनगिनत क्रांतिकारियों की बलि चढ़ने के बाद अंततः वो दिन आया, जिसका हर भारतवासी को इंतजार था. 15 अगस्त 1947 जिसे स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है उस दिन भी सभी भारत वासियों ने इस पर्व को बड़ी धूमधाम से बनाया था. भारत के सभी जाने – माने लोग दिल्ली जश्न मनाने पहुंचे थे. लेकिन सिर्फ महात्मा गांधी ही ऐसे व्यक्ति थे जो इस जश्न में शामिल नहीं हुए थे. क्योंकि उस समय गांधीजी कोलकाता में हिंदू मुस्लिम के दंगे को रोकने की कोशिश में लगे हुए थे. लेकिन अभी भी पूरी तरह से देश आजाद नहीं हो पाया था. क्योंकि भारत का संविधान पूरी तरह बन कर तैयार नहीं हुआ था और ना ही लागू हुआ था.
देश की आजादी के बाद सिर्फ अब एक हीं मुद्दा था, संविधान. भारत का संविधान बनाने के लिए 7 सदस्यों की एक कमेटी का गठन हुआ. जिसमें एन. गोपाल स्वामी अयंगर, ए. कृष्णास्वामी अय्यर, डॉ. बी. आर. अंबेडकर, सैयद मोहम्मद साहदुल्लाह, के. एम मुंशी, बी एल मित्तर, डी. पी. खैतान थे. और डॉ. बी. आर. अंबेडकर इस कमेटी के अध्यक्ष थे.
इन सब ने मिलकर भारत का संविधान बनाने की प्रक्रिया शुरु की. कई मुद्दों पर सबकी राय एक जैसी हुआ करती थी, लेकिन जब कोई मुद्दों पर समान विचार नहीं होता, तो मतदान कराया जाता. जिसके पक्ष में ज्यादा मत होता उस पक्ष को माना जाता था.
21 अप्रैल 1947 को जब इसे पेश किया गया, तो और सारे लोगों को ये प्रस्ताव पसंद नहीं आया. जिसके बाद और भी कई कानून बने. जिसमें सिखों को कई हथियार रखने की छूट दी गई. इस मामले पर भी काफी विवाद हुआ. इसके बाद नशे से जुड़े कानून को इसमें जोड़ने की अपील हुई. इस पर भी कुछ लोग इसके पक्ष में थे, तो कुछ इसके खिलाफ में.
अनेकों कानून बन जाने के बाद अब देश की भाषा पर बात आई. भारत देश की भाषा कौन सी होनी चाहिए. पंडित जवाहरलाल नेहरु की इच्छा थी कि राष्ट्रभाषा हिंदुस्तानी ही बने. महात्मा गांधी की भी यही इच्छा थी कि हिंदुस्तान की भाषा पूरे देश की राज्य भाषाओं के शब्दों को मिलाकर बनाया जाए. कांग्रेस कमेटी की एक बैठक हुई जिसमें प्रस्ताव रखा गया कि देश की राष्ट्रभाषा हिंदुस्तानी होनी चाहिए. जिसमें कई लोगों का कहना था कि हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा होगी.
इन मतभेदों के बीच मतदान हुआ. जिसमें कुल 32 मत हिंदुस्तानी भाषा को दिए गए. जबकि 63 मत हिंदी को दिए गए. इस तरह हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान लिया गया. लेकिन अब भी उसे संसद में मंजूरी मिलनी वाकी थी. बहस सिर्फ भाषा को लेकर ही नहीं, बल्कि संख्याओं के चिन्ह को लेकर भी जारी थी. काफी देर बहस चलने के बाद कांग्रेस की एक बैठक हुई. जिसमें नरम दल और गरम दल के नेतागण हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने को तैयार हुए और संख्याओं के कानून को भी पारित किया गया.
कड़े संघर्षों के बाद, 2 साल 11 महीने 18 दिन बाद डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और उनकी कमेटी ने इस काम को अंजाम तक पहुंचा दिया. अब वो वक्त था जब भारत के पास अपना भारत का संविधान था. अब सही मायने में देश आजाद था.
24 जनवरी 1950 को भारत के संविधान पर सभी सदस्यों के हस्ताक्षर किए गए. आजाद देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद चुन लिये गए. और इसी दिन ‘जन गण मन’ को भारत देश का राष्ट्रगान और ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाया गया.
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