साहित्य जगत के महान कवियों में से एक कवि कालीदास के बारे में हम सब ने सुना है.
कवि कालीदास ने अपने जीवनकाल में कई बेहतरीन काव्य रचनायें की है, लेकिन उनके द्वारा लिखे हुए साहित्यों में से शकुंतला और मेघदूत ये दो किताबों ने उन्हें महान कवियों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया. साथ ही इन किताबें के अलावा आज तक लोगों को उनकी लिखी कई रचनाएं अपनी और आकर्षित करती रही है.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक महामुर्ख व्यक्ति एक महाज्ञानी और एक कल्पनाशील कवि कालीदास कैसे बना?
आईएं आज हम आपको कवि कालिदास और उनकी पत्नी विद्योत्मा की रोचक कहानी बताते है.
विद्योत्मा बहुत पहले एक राजकुमारी थी.
यह राजकुमारी बहुत विद्वान थी. वह तर्क-वितर्क में अच्छे अच्छों को परास्त कर देती थी. जब उसकी शादी कि बात चली तब उसने घोषणा कर दी कि वह सिर्फ और सिर्फ उसी इंसान से शादी करेगी जो उसे ज्ञान चर्चा में हरा सके. उसके राज्य के विद्वान राजकुमारी से परास्त होकर वैसे ही कुंठित बैठे थे. उन विद्द्वनों के अहंकार को चोट लगी थी और वे अपना बदला लेना चाहते थे.
उन्होंने मिल कर योजना रची कि राजकुमारी का विवाह एक ढोर से कराएँगे तभी उनको चैन मिलेगा. अपनी इसी घृणा के चलते वे सब एक महामूर्ख को ढूंढने निकले तो कुछ दिन बाद उन्हें एक आदमी मिला बड़ा ही विचित्र, जिस पेड़ कि डाल पर बैठा था और उसी को काट रहा था. उन्होंने सोचा इससे बड़ा मूर्ख कहाँ मिलेगा, इन्होने उस आदमी को नीचे बुलाया और उससे कहा- “चलो हमारे साथ हम तुम्हें महल मैं बढ़िया भोजन करवाएंगे, बस एक ही शर्त है महल मैं जाकर तुम्हें कुछ भी नहीं बोलना है,जो कुछ बताना चाहते हो सिर्फ इशारे से बताना” वह आदमी राज़ी ख़ुशी उन लोगों के साथ चल पड़ा. विद्वान राजा के सामने उपस्थित हुए और उन्होंने कहा कि हमें राजकुमारी के लायक एक बहुत बड़े विद्वान मिले हैं, उन्हें राजकुमारी का प्रस्ताव स्वीकार है परन्तु उन्होंने चर्चा कि शर्त यह रखी है कि वे अपने मुंह से कुछ नहीं बोलेंगे.
राजकुमारी और वह व्यक्ति आमने सामने बैठे, राजकुमारी ने मुर्ख को अपनी खुली हथेली दिखायी तो मुर्ख को लगा वे उसे थप्पड़ दिखा रही हैं, उसने बदले में एक अपनी बंद हथेली यानी एक घूँसा दिखाया. विद्वानों ने इस विचित्र प्रसंग का यह निष्कर्ष निकल कर प्रस्तुत किया कि राजकुमारी ने खुली हथेली से पाँचों इंद्रियां दिखायी पर विद्वान कि मुट्ठी का मतलब यह है कि इंद्रियों को हमेशा नियंत्रण में रखना चाहिए. राजकुमारी ने यह बात सही मानते हुए अपनी हार स्वीकार कि और उस व्यक्ति से शादी करने को तैयार हो गयी.
शादी के पश्चात जब राजकुमारी को पता चला कि उसके पति एक बड़े विद्वान नहीं एक बड़े मुर्ख हैं तो वो बहुत आहात हुयी और उसने अपने पति को बहुत कोसा. मुर्ख को उसके इस व्यव्हार का काफी दुःख हुआ उसने सोचा वो ज्ञान प्राप्त करके ही रहेगा. उजैन के गढ़ कलिका मंदिर में उसने देवी से प्रार्थना करने लगे कि वह उसे ज्ञान दें, बदले में वह अपनी जीभ तक काटने को तैयार थे. जब उसने अपनी जीभ काटने के लिए तलवार उठायी देवी प्रकट हुयी और उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया.
बस इसके बाद उस मुर्ख ने जो किया उसका साक्षी पूरा साहित्य जगत हैं. कवि कालीदास अगर कवि कालिदास बन पाएं तो इसके पीछे उनकी धर्मपत्नी का सर्वाधिक योगदान था.
शकुंतला और मेघदूत जैसी रचनाएं उन्होंने ने अपनी पत्नी से विरह के दौरान ही लिखी थी जो सबसे लोकप्रिय हुई.
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