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अगर आंखों पर पट्टी भी बांध देते थे तब पर भी भारत का ये खिलाड़ी गोल दाग देता था

मेजर ध्यानचंद

मेजर ध्यानचंद के बारे में कहा जाता है कि अगर उनकी आंख पर पट्टी बांधकर उनकों मैदान में छोड़ दिया जाए तो वो बंद आखों से भी गोल दाग देते थे.

लोग उन्हें हॉकी का जादूगर कहते थे.

हॉलैंड में लोगों ने उनकी हॉकी स्टिक तुड़वा कर देखी कि कहीं उसमें चुंबक तो नहीं लगा है. क्योंकि एक बार गेंद मेजर ध्यानचंद के पास आ गई तो विरोधी खिलाड़ी उनसे गेंद छीन नहीं पाते थे.

ऐसा ही अंदेशा जापान के लोगों को भी था कि उन्होंने अपनी स्टिक में गोंद लगा रखी है. मेजर ध्यानचंद के साथ ऐसी न जाने कितनी किवदंतियाँ जुड़ी हैं.

अपने जमाने में इस खिलाड़ी ने किस हद तक अपना लोहा मनवाया होगा इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विएना के स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक मूर्ति लगाई गई है जिसमें उनके चार हाथ और उनमें चार स्टिकें दिखाई गई हैं.

पूर्व ओलंपियन कमांडर नंदी सिंह ने एक बार कहा था कि दुनिया कहती थी कि बॉल मेजर ध्यानचंद की हॉकी से चिपक जाती थी., लेकिन वो अकेले खिलाड़ी थे जो गेंद को अपने पास रखते ही नहीं थे. वो एक एक इंच का नापा हुआ पास देते थे ताकि पास लेने वाले को कोई तकलीफ न हो.

उनको बिना देखे ही पता होता था कि मैदान के किस हिस्से में उनकी टीम के खिलाड़ी और प्रतिद्वंद्वी मूव कर रहे हैं. वो किसी भी कोण से गोल कर सकते थे.

कहा जाता है कि ध्यान चंद की असली प्रतिभा उनके दिमाग में थी. वो उस ढंग से हॉकी के मैदान को देख सकते थे जैसे शतरंज का खिलाड़ी चेस बोर्ड को देखता है.

किसी खिलाड़ी की संपूर्णता का अंदाजा इसी बात से होता है कि वो आँखों पर पट्टी बाँध कर भी मैदान की ज्योमेट्री पर महारत हासिल कर पाए.

बताया कि जब मेजर ध्यानचंद 54 साल के थे तो उस समय भी भारतीय हॉकी टीम का कोई भी खिलाड़ी बुली में उनसे गेंद नहीं छीन सकता था.