एचआईवी एड्स का खतरा – एचआईवी/एड्स एक ऐसी जानलेवा बीमारी है जिसका आज तक कोई कारगर इलाज नहीं मिल पाया है हालांकि दवाईयों के सहारे इस बीमारी से पीड़ित इंसान अपनी जिंदगी के कुछ और दिन ज़रूर बढ़ा सकता है.
आंकड़ों के अनुसार साल 1981 से लेकर साल 2012 तक एचआईवी/एड्स के कारण दुनियाभर में करीब 36 मिलियन लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.
हालांकि आज अधिकांश लोग इस जानलेवा बीमारी के प्रति जागरूक हैं लेकिन बावजूद इसके ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जिनमें इस बीमारी के प्रति जागरूकता की काफी कमी है क्योंकि आज भी अधिकांश लोगों को यही लगता है कि एचआईवी/एड्स का खतरा सबसे ज्यादा सेक्स वर्करों को रहता है लेकिन ऐसा नहीं है.
आइए आज हम आपको इस लेख के ज़रिए बताते हैं कि एचआईवी एड्स का खतरा सबसे ज्यादा किन लोगों को होता है और इस जानलेवा बीमारी से जुडी कुछ ऐसी जानकारी जिसके बारे में हर किसी को पता होना चाहिए.
एचआईवी एड्स का खतरा –
1- ट्रांसजेंडर्स को है एचआईवी एड्स का खतरा
यह जानकर आपको भी हैरानी होगी लेकिन ये बिल्कुल सच है कि ट्रांसजेंडर्स को एचआईवी/एड्स का खतरा सबसे ज्यादा होता है. वर्ल्ड बैंक ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक 2012 के सर्वे में महिला सेक्स वर्कर्स की तुलना में यह पाया गया कि गे सेक्स में पुरुषों को ज्यादा एड्स हुआ है.
महिलाओं का प्रतिशत 2.61 था और वहीं पुरुष के साथ सेक्स करने वाले गे का प्रतिशत 5.01 था. नशीली दवाओं के इंजेक्शन लगाने वालों का प्रतिशत 5.91 था और सबसे ज्यादा ट्रांसजेंडर को यानि 18.80 प्रतिशत को एड्स हुआ था.
2- ऐसे लोगों को होता है ज्यादा खतरा
जो लोग असुरक्षित यौन संबंध बनाते हैं और जिनके कई सेक्सुअल पार्टनर होते हैं. ऐसे लोगों को एचआईवी/एड्स का ज्यादा खतरा होता है. इसके अलावा अगर किसी व्यक्ति को पहले से ही हर्पीज सिफिलिस जैसा कोई इंफेक्शन गुप्तांगों को हो चुका है तो उसके शरीर में इस जानलेवा बीमारी के वायरस आने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है.
3- शरीर में कैसे आता है यह वायरस ?
दरअसल एचआईवी के वायरस शरीर के भीतर सबसे ज्यादा सेक्सुअल कॉन्टैक्ट या फिर किसी सीरिंज के जरिए दाखिल होते हैं. अगर किसी एचआईवी मरीज़ को चोट लगी है या खून आ रहा है तो फिर उसे दस्ताने पहने बगैर नहीं छूना चाहिए. ऐसे में अगर गलती से भी उसका संक्रमित खून आपके शरीर के अंदर चला जाता है तो वो वायरस आपको भी अपना शिकार बना सकता है.
4- एचआईवी/एड्स के अंतर को समझना है ज़रूरी
जब किसी व्यक्ति को एचआईवी हो जाता है तो फिर एचआईवी वायरस के कारण उसका शरीर कमजोर हो जाता है और उस व्यक्ति का शरीर किसी तरह के इंफेक्शन से लड़ने के लायक नहीं रह जाता. लेकिन सिर्फ एचआईवी वायरस शरीर में आने से एड्स नहीं होता बल्कि एड्स तब होता है जब किसी को एचआईवी इंफेक्शन हो जाए और एड्स इस इंफेक्शन का आखिरी पड़ाव है.
5- एचआईवी की कारगर दवा का है इंतज़ार
वैसे तो एचआईवी के इलाज के लिए दवा उपलब्ध है जो इस बीमारी के वायरस को बढ़ने से काफी हद तक रोकती है लेकिन इसके वायरस शरीर से नहीं जाते हैं वो वायरस शरीर में हमेशा मौजूद रहते हैं. हालांकि वैज्ञानिक भी लगातार इस कोशिश में लगे हुए हैं कि ऐसा कोई वैक्सीन बनाया जाए जिससे शरीर का इम्यून सिस्टम सही बना रहे लेकिन कुछ दवाओं के बावजूद ये एक लाइलाज बीमारी है और लोगों को इसकी कारगर दवा का इंतज़ार है.
एचआईवी एड्स का खतरा – बहरहाल कहते हैं कि इलाज से कही ज्यादा बेहतर होता है बीमारियों से बचाव, इसलिए एचआईवी/एड्स जैसी जानलेवा बीमारी से खुद को बचाने के लिए जरूरत है इस बीमारी के प्रति अधिक से अधिक जागरूक होने की, ताकि ये बीमारी किसी को भी अपना शिकार न बना सके.