बंजारों का इतिहास – मानव जाति आदिकाल से ही यात्रा करके अपने आप को समर्द्ध बनाती आई है. ऐसे में अगर कोई जाति यदि सफ़र का पर्यायवाची ही बन जाये तो अपने आप में अनौखी बात नज़र आती है. बिना किसी घर-द्वार के यायावरों की तरह जीने वाली कौम है बंजारों की है, जो अपना पूरा जीवन यापन सड़कों पर बसर टैंट लगा कर बसर करते है। इतना ही वह अपना रोजगार भी वहीं से चला लेते है।
बंजारों का इतिहास – इनके लिए कहा गया है-
‘क्या गेहूं, चावल, मोठ, मटर, क्या आग धुंआ और अंगारा.
सब ठाट पड़ा रहा जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा.’
बंजारे सदियों से देश भर के दुर्गम इलाकों में यात्राएं करते चले आ रहे हैं. जहां आप और हम एक दिन की यात्रा से थकान महसूस करने लगते हैं, वहाँ यह जाति सदियों से यात्राओं में ही अपना जीवन बसर करती चली आ रही है. विदेशों में चली आ रही ‘जिप्सी’ समुदाय की प्रकृति भी कुछ ऐसी ही है. वो भी घुम्मकड़ों की तरह ही जीवन का आनंद लेते हुए जीते हैं. इन्हे ना सुकुन की भूख होती है, ना पैसों का लालच।
बंजारों का इतिहास – सदियों से चला आ रहा है ये सफ़र
बंजारों के जीवन यापन पर अलग अलग समुदाये के लोगों ने अपनी अलग अलग प्रतिक्रिया जाहिर की है। इस पर कुछ इतिहासकार मानते हैं कि राजस्थान से इस घुमन्तु समुदाय की शुरुआत हुई और धीरे-धीरे ये पूरे भारतवर्ष में फ़ैल गये। आज राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में ये काफ़ी संख्या में देखे जाते हैं. इसी के राजधानी दिल्ली के भी कई इलाकों में ये समुदाय झोपड़िया और टैंट लगाकार अपना जीवन बसर करते देखे जा सकते है।
बंजारों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है-
मानव के विकास क्रम के चक्र में इस समुदाय ने एक जगह न बस कर जीवनभर चलते-फिरते ज़िन्दगी की सच्चाइयों से रूबरू होने का रास्ता चुना.
बंजारों का इतिहास, बंजारों की ख़ासियत –
बंजारों का समुदाय कलाप्रेमी माना जाता है. नृत्य, चित्रकारी, गोदना, रंगोली, संगीत के लिए ये जाने जाते हैं. बॉलीवुड फिल्मों में कई बार बंजारों के नृत्यों को आपने देखा होगा.
यह कौम किसी भी तरह की सीमाओं को स्वीकार न करते हुए बेहिचक सफ़र करने के लिए प्रसिद्ध है. इनके इस उद्देश्य को इनकी निडरता, साहसिकता पूरा करती है.
सामान्य समाज के लिए भी रहे हैं उपयोगी-
किसी जमाने में अपनी घुमन्तु प्रवृति की वजह से ये सूचनाओं को लाने ले जाने का काम भी करते थे. यातायात, परिवहन, ख़रीद-फ़रोख़्त के कामों में प्राचीन समय में यह समुदाय आम लोगों के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण था.
आज भी जारी है सफ़र
इनके जीवन जीने के तरीकें अलग होते है, इनकी जरूरतें सीमित होती है। यहीं वजह है कि इनमें अपने जीवन यापन के साथ-साथ अपने व्यवसाय को लेकर भी कभी कोई होड़ नहीं होती। बंजारों का एक बड़ा गुट लगभग 10 से 12 परिवार एक साथ किसी जगह अपना टैंट लगाते है और वहीं चैनी, छलनी, सूप, चुल्हा, हथौड़ी आदि लोहे के सामान व औजार बेचकर अपना जीवन बसर करते हैं।
बंजारों के लिए ट्रेवलिंग कोई हॉबी नहीं बल्कि इनकी पहचान और अस्तित्व से जुड़ा पहलू है. निरंतरता और प्रगतिशीलता को बनाये हुए आज भी मानव जाति के इस विशेष समुदाय का सफ़र ज़ारी है.
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