क्या आप जानते है कि गणपति उत्सव की शुरुआत कहाँ से हुई....
इस उत्सव की शुरुआत धार्मिक से ज्यादा राजनैतिक कारणों से हुई थी.
जब ब्रिटिशराज के दौरान अत्याचार बढ़ने लगे और धारा 144 के जरिये अंग्रेजों ने भारतीय क्रांतिकारियों को समूह में मिलने से रोक दिया तो प्रसिद्ध क्रांतिकारी लोकमान्य तिलक ने लोगों तक अपनी बात कहने का एक नया और अनूठा तरीका इजाद किया.
पुणे के शनिवारवाडा में 1894 में तिलक ने गणपति उत्सव की शुरुआत की. ये देश का पहला सार्वजानिक गणपति उत्सव था. इससे पहले लोग केवल अपने घरों में गणपति उत्सव मनाते थे.
गणपति उत्सव मनाने का सबसे बड़ा कारण ये था कि अंग्रेजों ने राजनैतिक सभाओं पर रोक लगा रखी थी पर धार्मिक उत्सव और सभाओं पर कोई रोक नहीं थी.
इस बात का फायदा बालगंगाधर तिलक ने उठाया और गणपति उत्सव के जरिये अपनी बात लोगों तक पहुंचानी शुरू की.
पहला गणपति उत्सव 20 अक्तूबर 1894 से लेकर 30 अक्तूबर 1894 तक मनाया गया.
इस उत्सव में 10 दिन लगातार तिलक ने देश के विभिन्न प्रसिद्ध क्रांतिकारियों को बुलाया और गणपति उत्सव की आड़ में सभाएं आयोजित की गयी .
1905 में अंग्रेजों ने धर्म के आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया, इस घटना को इतिहास में बंग भंग के नाम से जाना जाता है. इस विभाजन का पूरे देश में विरोध हुआ.
तिलक ने गणपति उत्सव और बंगाल में दुर्गा पूजा के माध्यम से देश के लोगों तक अपनी बात पहुंचाई.
गणपति उत्सव ने बिपिन चंद्र पाल, चापेकर बंधू और अन्य बड़े बड़े देशभक्तों ने लोगों को ब्रिटिशराज को कमज़ोर करने के तरीके बताये.
इस तरह गणपति उत्सव और दुर्गा पूजा के जरिये लाखों करोड़ो लोग तिलक के साथ भारत के क्रांतिकारी आन्दोलन में शामिल हुए.
1894 को पुणे में पहला गणेश उत्सव हुआ उसके अगले ही साल 1895 में ये संख्या 11 हो गयी और फिर कुछ ही सालों में ये संख्या 100 तक पहुँच गयी. पुणे से शुरू हुआ गणपति उत्सव धीरे धीरे महाराष्ट्र के अन्य शहरों में भी पहुँच गया. कुछ सालों में ही मुंबई, नागपुर, अहमदनगर में भी गणेश उत्सव जोर शोर से मनाया जाने लगा.
आज के समय में गणपति उत्सव महाराष्ट्र का सबसे बड़ा उत्सव है. ये उत्सव सामाजिक समरसता का प्रतीक है. धर्म जाति अमीरी गरीबी से ऊपर उठ कर पूरा गणपति उत्सव हर्षोल्लास से मनाता है.
तरह तरह के गणपति और भव्य पंडाल के साथ आज गणपति उत्सव एक विशाल रूप ले चूका है. स्वतंत्रता आन्दोलन और स्वदेशी आन्दोलन के लिए शुरू हुआ उत्सव आज महाराष्ट्र की शान बन चुका है.
ये थी गणपति उत्सव की शुरुआत की कहानी.
कैसे तिलक ने अंग्रजों की आँखों में धुल झोंकते हुए भारतीय जनता में आज़ादी की अलख जगायी.