(सूचना- फीचर का उद्देश्य देश की अखंडता को बनाये रखना है, ना कि किसी की भावनाओं को भड़काना. कश्मीर पर हिन्दू, मुस्लिम, सिख और इसाई सभी का बराबर का हक़ है. यही फीचर बताना चाहता है.)
आज़ादी के वक़्त बोला गया था कि पाकिस्तान को बनाने के बाद देश में शांति हो जाएगी. जबकि यह समस्या पहले से ज्यादा ही हुई है.
तब इस बात हो हल्के में लिया गया था. पर 4 जनवरी 1990 को कश्मीर के प्रत्येक हिंदू घर पर एक नोट चिपकाया गया, जिस पर लिखा था कश्मीर छोड़ के नहीं गए तो मारे जाओगे. कश्मीर में हिंसा की यह शुरूआत थी.
भारत में जहाँ हर तरफ हिन्दू और मुस्लिम आराम से रह रहे थे मगर वहीँ कश्मीर में शान्ति खत्म करना, पाकिस्तान का एक बड़ा मकसद बनता जा रहा था.
सबसे पहले कश्मीर में हिन्दुओं नेताओं को मारा गया, दिल्ली में बैठी सरकार चुप थी. उच्च अधिकारी मारे गए, सरकार चुप रही. अब बारी थी वहां रह रहे हिन्दुओं की,(कश्मीरी पंडित) स्त्रियों का बलात्कार किया गया, हिन्दू लोगों को जिंदा जला दिया गया या निर्वस्त्र अवस्था में पेड़ से टांग दिया गया, सरकार अब भी चुप रही. कश्मीर के इस आतंक के बाद, यहाँ रह रहे लोग अब डर चुके थे और कश्मीर से 3.5 लाख हिंदू पलायन कर गए. सरकार अब भी शांत बैठी रही.
यह पलायन देश का देश में था. धर्मनिरपेक्ष देश में इतना बड़ा पलायन, हमारे इतिहास में आज तक नहीं हुआ है.
आप खुद अनुमान लगाओ कि जैसा कश्मीर में हुआ, कुछ वैसा ही अगर किसी एक धर्म का ख़ास वर्ग के लोगों के साथ किसी और राज्य में हो तब क्या सभी राजनैतिक चुप रह पायेंगी? जैसे की अब सभी ने चुप्पी रख रखी है.
मानव अधिकार आयोग क्यों आँखें बंद करके आज तक बैठा हुआ है?
आइये अब एक बार नजर डालते हैं दो मुख्य कारणों पर जिनकी वजह से यह कत्ले आम किया गया-
- पाकिस्तान समझ चुका था कि कश्मीर पर अगर पाकिस्तान का झन्डा लगाना है तो यहाँ से हिन्दू लोगों को मार कर खत्म कर दो या इनको यहाँ से निकाल दिया जाये. और पलायन हुआ, कश्मीर से पंडित जा चुके हैं, इसके बाद क्या हुआ है कश्मीर में आप सब जानते हैं.
- कुछ अलगाववादी लोग जानते थे कि अगर कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाना है तो सयुक्त राष्ट्र संघ की मदद ली जायगी और ऐसे में राष्ट्र संघ एक ही बात बोलेगा कि जनता का जनमत लिया जाए. जनता जहाँ बोले वहां रहे. और पंडितों के रहते पाकिस्तान में शामिल होना मुश्किल था.
वैसे इस समस्या को कहीं ना कहीं हमारी सरकार ने भी बढ़ाया है. जब पंडितों को यहाँ से निकाला जा रहा था तो तब आखिर भारत सरकार चुप क्यों थी?
देश की सेना उन दिनों कश्मीर में ही थी किन्तु इसका जवाब आज तक नहीं मिल पाया है कि वह चुप क्यों थी?
अब क्यों यह मुद्दा उठा है?
केंद्र की एनडीए की सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह बात कही थी कि अगर हम सत्ता में आते हैं तो कश्मीरी पंडितों को वापस कश्मीर में बसाने का काम किया जायेगा.
अभी जो सरकार की तरफ से ब्यान आया है उसके अनुसार कश्मीर में हिन्दू लोगों के लिए एक सुरक्षित टाउनशिप बनाकर वहां उन्हें बसाया जाना है.
राज्य की सरकार ने इस योजना के लिए ज़मींन देने का ऐलान कर दिया है.
लेकिन अलगाववादी नेताओं ने इस योजना का विरोध किया है. इनके अनुसार अगर पंडितों की यहाँ वापसी होती है तो इससे राज्य में हिंसा उत्पन्न हो सकती है.
आखिर कश्मीर पर हक़ हिन्दुओं का भी तो है
भारत देश एक धर्मनिरपेक्ष देश है. कश्मीर पर सभी धर्म के लोगों का पूरा हक़ है और होना भी चाहिए. यहाँ हिन्दू, मुस्लिम, सिख और इसाई सभी रह सकते हैं.
क्या हिन्दू लोग कश्मीर में हिंसा भड़काते हैं? क्या इनकी वजह से कश्मीर में हिंसा उत्पन्न हो सकती है? यदि यह लोग शांतिपूर्ण वातावरण को नुकसान पहुंचाना चाहते तो, वहां से यह लोग पलायन क्यों करते?
क्या कश्मीर केवल अलगाववादी लोगों का ही राज्य है?
या कश्मीर अब एक अलग ही देश बनाया जा रहा है जो भारत का अंग ही नहीं है?
आप खुद अनुमान लगायें अगर आपसे आपका घर ही ले लिया जाए तो आप पर क्या बीतेगी? आज कश्मीरी पंडित देश में भिखारियों की जिंदगी जी रहे हैं. इस आग में इनकी पूरी की पूरी एक पीढ़ी ही खत्म हो चुकी है.
क्या देश की सरकार इनको वहां वापस बसा कर कोई गलती कर रही है?
आपकी राय का इंतज़ार रहेगा.