पश्चिम बंगाल में मुहर्रम के बाद हिंदुओ पर हो रहे सुनियोजित हमलो को लेकर जिस प्रकार सेक्युलर मीडिया ने खामोशी की चादर ओढ़ रखी है वह कई सवाल पैदा करता है.
अखलाक और कन्हैया को लेकर स्क्रीन काली करने वाला और असहिष्णुता का रोना रोने वाला मीडिया जिस प्रकार पश्चिम बंगाल की घटनाओं को पी रहा है क्या वह उस वक्त का इंतजार कर रहा है जब हिंदुओं की ओर से कोई जवाबी हमला और उस वक्त वह अल्पसंख्यकों पर हमले की खबर बनाकर हिंदुओं को कठघरे में खड़ा करे.
क्या देश की मुख्यधारा का मीडिया केवल तभी खबर बनाएगा जब कोई अखलाक मारा जाएगा. उस वक्त पूरा मीडिया दौड़ कर वहां जाकर जख्मों की पड़ताल करेगा. पश्चिम बंगाल में हजारों हिंदुओं के घर जला दिए गए, घरों में लूटपाट हुई और उनको गोली मारी गई इसको लेकर मीडिया में कोई हलचल नही होना संदेह पैदा करता है.
राज्य के हाजीनगर से हिंदुओं पर हमले के जो वीडियो सामने आ रहे हैं उसमे साफ दिखाई पड़ रहा है कि कुछ जिहादी मिलकर हिंदुओं पर हमले कर रहे है और लोगों के घरों को जला रहे हैं. खुलेआम पाकिस्तानी झंडे फेहरा रहे हैं और महिलाओं को निशाना बना रहे हैं. लेकिन सेक्युलर राष्ट्रीय मीडिया हिंदुओं पर हमले दिखाना नहीं चाहता है.
दरअसल, ममता बनर्जी सरकार ने मुस्लिमों के दवाब में इस वर्ष दुर्गा पूजा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था. क्योंकि मोहर्रम और दुर्गा पूजा साथ साथ पड़ रहे थे. इसलिए मुहर्रम के रास्ते में पड़ने वाले सभी दुर्गा पूजा के पंडालों को हटा दिया गया या उनको काले कपड़े से ढ़क दिया गया.
जिसके विरोध स्थानीय हिंदू समाज उच्च न्यायालय की शरण में गए. न्यायालय ने सरकार द्वारा मुहर्रम के नाम पर दुर्गा पूजा रोके जाने को गलत ठहराते हुए सरकार के निर्णय को गैरकानूनी ठहरा दिया.
बताया जाता है इसके बाद मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा भड़काए गए जेहादियों ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रो में जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं वहां हिंसा का अभूतपूर्व तांडव किया.
हाजीनगर की तरह हावड़ा जिले में मुहर्रम के समय पर बस में बैठी हिन्दू महिलाओं के साथ दुव्र्यहार कर उनके कपड़े फाड़े गए. मुर्शिदाबाद में ताजिया के दौरान उग्र मुस्लिम भीड़ ने हिन्दुओ की दर्जनों दुकानों में लूटपाट कर आगजनी की.
उत्तरी 24 परगना, मेदनीपुर और मालदा सहित कई स्थानों पर जिस प्रकार मुहर्रम के दौरान और बाद में हिंदुओं पर हमले किए गए हैं उसको लेकर मीडिया शांत हैं.
इतने बड़े पैमाने पर हिंदुओं पर हमले जिनकी मीडिया में खबर न बनाना दर्शाता है कि उसमें वह साहस ही नहीं बचा जो सच का सामना कर सके.
स्वयं को सेक्युलर कहलाने वाला मीडिया जिस प्रकार बंगाल में दंगों की रिर्पोटिंग को दबा रहा है उसको क्या कहा जाए. कल जब लोग मीडिया से इसको लेकर सवाल करेंगे और उसको बुरा भला कहेंगे, तो सबसे ज्यादा परेशानी इसी सेक्युलर मीडिया को होगी.
अगर ऐसे ही चलता रहा तो मीडिया अपनी सार्थकता और विश्वसनीयता खो बैठेगा.