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अयोध्या के इतिहास में आज पहली बार मुसलमान सरयू के किनारे पढ़ेंगे कुरान की आयतें

सरयू के किनारे

सरयू के किनारे – अयोध्या को वैसे तो हिंदुओं के प्रमुख धर्म स्थल के रूप में जाना जाता है, खासतौर पर राम मंदिर के लिए, लेकिन इसी अयोध्या में बड़ी संख्या में सूफी संतों के मकबरे भी है.

12 जुलाई का दिन अयोध्यावासियों के लिए बहुत खास रहेगा, क्योंकि इस दिन अयोध्या हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल पेश करेगा.

गुरुवार को यहां एक बेहद खास आयोजन होने वाला है जिससे भारत की भाईचारे वाले छवि को मज़बूती मिलेगी.

दरअसल, गुरुवार को अयोध्या के सरयू के किनारे पर इतिहास का सबसे बड़ा आयोजन होने जा रहा. पहली बार नदी के तट बड़ी संख्या में मौलवी और सैकड़ों आम मुसलमान कुरान की आयतें पढ़ेंगे. इस कार्यक्रम का आयोजन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच इस कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है. मुस्लिम राष्ट्रिय मंच की इस पहल को भाईचारे का संदेश देने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.

अयोध्या में मंदिरों के साथ ही सूफी संतों के मकबरे और मजारें भी बहुत हैं. पहले खबर आई थी कि ये आयोजन आरएसएस करा रहा है, मगर आरएसएस ने ट्वीट कर इसे गलत बताया है.

हमारे देश में जहां आए दिन छोटी-छोटी बातो पर हिंदूं मुस्लिम दंगे हो जाते हैं ऐसे में इस तरह के आयोजन बहुत महत्वपूर्ण है और इससे आपसी भाईचारे वो सौहार्द का संदेश जाएगा.

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के सह संयोजक मुरारी दास के मुताबिक, गुरुवार को सरयू नदी के किनारे करीब 1500 मुस्लिम समाज के मौलवी और आम मुसलमान जुटेंगे. कुरान की आयतें सरयू नदी के किनारे स्थिति नूह अली सलाम दरगाह पर पढ़ी जाएंगी. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का कहना है कि ये अपने आप में अनोखा आयोजन होगा, जब सैकड़ों की संख्या में मुस्लिम सरयू पर कुरान की आयतें पढ़ेंगे और दूसरी तरफ मंत्रोच्चार और सरयू के किनारे आरती का भी आयोजन किया जाएगा.

अयोध्या में सूफी संतों की काफी संख्या में मकबरे और मजारें हैं.

सरयू के किनारे

माना जा रहा है कि इस कार्यक्रम के जरिए पूरी दुनिया में एक संदेश फैलाने का प्रयास किया जा रहा है. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का कहना है कि अयोध्या हिंदू और मुसलमान भाईचारे का प्रतीक स्थल है और सभी मिलकर हिन्दुस्तान को एक तरक्कीपसंद, तालीमपसंद और कौमी एकता कायम रखने वाला राष्ट्र बनाने में योगदान करें. वाकई उनकी सोच काफी अच्छी है.

आज से पहले आपने हिंदू और मुस्लिमों को साथ इबादत करते शायद ही देखा होगा, मगर सरयू के किनारे पर ये ऐतिहासिक चीज़ दिखने वाली है जब हिंदू अपने तरीके से ईशवर की आराध्ना करेंगे और मुस्लिम अपने तरीके से खुदा की इबादत करेंगे.

इस आयोजन के पीछे कोई राजनीतिक मंशा है या नहीं ये तो पता नहीं, मगर ये कदम देश की एकता के लिए वाकई सराहनीय है.