“पैसे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता” ये बात सुनी तो थी, पर इस घटना के बाद हक़ीकत लगने लगी हैं.
अयोध्या के राम मंदिर मामले में हिन्दुओ के हित की बात करने वाली संस्था “हिन्दू महासभा” ने 1400 करोड़ रूपए हडपने का आरोप किसी और पर नहीं बल्कि “विश्व हिन्दू परिषद्” पर ही लगाया हैं. विश्व हिन्दू परिषद् जो अक्सर अपने साम्प्रदायिक बयानों के लिए जानी जाती हैं ने इस आरोप का खंडन किया हैं.
हिन्दू संगठन अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के अनुसार राम मंदिर निर्माण के लिए VHP और उसकी साथ काम करने वाली बाकि इकाईयों ने मंदिर निर्माण में मिले चंदे का ग़लत इस्तेमाल किया हैं. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार VHP को 1400 करोड़ रूपए कैश और साथ ही कई किवंटल सोने की बनी ईट दान में प्राप्त हुई थी. दान में मिले इस पुरे अमाउंट का VHP और अन्य सहयोगी इकाई ने मंदिर निर्माण में इस्तेमाल नहीं किया हैं.
हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता देवेन्द्र पाण्डेय के अनुसार राम जन्मभूमि न्यास और VHP नेताओं द्वारा तैयार किये गए मंदिर डिज़ाइन में 4करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. दान में मिली थी कई किवंटल सोने की ईट और इन सारे पैसों को विहिप ने गबन किया हैं. लेकिन विहिप के अनुसार ये सारे पैसे पत्थरों की नक्काशी में खर्च किये गए हैं.
प्रवक्ता देवेन्द्र पाण्डेय ने इस तरह हुई धन की हेरापेरी की पूरी जानकारी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और विहिप संरक्षक अशोक सिंघल को पत्र लिख कर दी हैं. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने देवन्द्र पाण्डेय के पत्र मिलने की जानकारी दी हैं. अशोक सिंघल ने इस पत्र का जवाब भी दिया हैं पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ओर से इस पत्र के बारे में कोई जवाब नहीं आया हैं.
विहिप के संरक्षक अशोक सिंघ ने हिन्दू महासभा द्वारा लगाये गए इस आरोप को बेबुनियाद और बकवास बताया हैं. अशोक सिंघल ने इस बारे में आगे कहते हुए कहा कि 1989 में 8.25 करोड़ रुपये चंदे के तौर पर आये थे जो राम मंदिर निर्माण में पत्थरों की नक्काशी पर खर्च हुए हैं और सारा फण्ड ख़त्म हो जाने पर निर्माण कार्य को 5साल के लिए रोक दिया गया था. साथ ही राम जन्म भूमि न्यास की पिछली मीटिंग में सवा लाख क्यूबिक फुट पत्थरों के दान और उन पर नक्काशी की बात भी कही गयी.
विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेन्द्र जैन ने हिन्दू महासभा द्वारा लगाये गए इस आरोप के बारे में कहा कि-गैर-ज़िम्मेदार लोगों द्वारा इस तरह के आरोप पहले भी लगाये जा चुके हैं, इसमें कोई ने नयी बात नहीं हैं और दान से जुड़ी साड़ी जानकारी न्यास के पास उपलब्ध हैं जिन्हें जांचा जा सकता हैं.
निर्माण कार्य में होने वाले खर्च का नियमित ऑडिट भी होता हैं तो इस तरह की हेराफेरी और अनियमितता की कोई गुंजाईश ही नहीं हैं.
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