महाराज संग्रामराज के शासन काल में कुछ 1003 ई. से 1028 ई. तक, गजनवी दो बार कश्मीर जीतने के इरादे से यहाँ पर हमला करता है किन्तु वह यहाँ से मारकर भगा दिया जाता है.
कश्मीर के इतिहास को आप उठा लीजिये और संग्रामराज जी का शासनकाल पढ़ना शुरू कीजिये तो आप इस सत्य से वाकिफ हो जायेंगे.
(आप सबूत के तौर पर पुस्तक व्यथित कश्मीर पढ़ें, इसके लेखक नरेन्द्र सहगल हैं.)
यह पुस्तक बताती है कि जब ईरान, ईराक और तुर्किस्तान को अपने पैरों तले सुलतान महमूद गजनवी ने रौदा तो वह यह सोचने लगा था कि वह भगवान शिव के सबसे प्रिय स्थान कश्मीर को अपना बना लेगा. इसी इच्छा के चलते उसने दो बार भारत पर हमला भी किया लेकिन कश्मीर की वादियों से उसको खाली हाथ लौटना पड़ा था.
असल में हिन्दू कश्मीर पर शुरूआत से और अंत तक हिन्दू राजाओं का ही राज रहा था.
इस हिन्दू कश्मीर में कई ऐसे हिन्दू मंदिर भी हैं जो सदियों से अपना महत्त्व बरकरार रखे हुए हैं. लेकिन कश्मीर जो कभी हिन्दू ब्राह्मणों के लिए स्वर्ग होता था वह अचानक से आजादी के बाद साजिश का शिकार हो जाता है.
जब गजनवी ने सन 1015 को किया हमला
गजनवी का हिन्दू कश्मीर पर पहला हमला तो 1015 ई. को बताया जाता है.
गजनवी को तौसी नामक मैदान में घेरकर मारा गया था. इसके बाद एक मुस्लिम इतिहासकार नजीम ने अपनी पुस्तक “महमूद ऑफ़ गजनी “में लिखा है कि 1021 में कश्मीर पर दोबारा आक्रमण कर जीतने इच्छा से आये गजनी को बर्बादी की संभावना से डरकर दुम दबाकर भागना ही उचित लगा.
हिन्दू कश्मीर को जीतने का इरादा उसने सदा सर्वदा के लिए त्याग दिया.
तो कश्मीर पर इसे हम शायद एक तरह से पहला मुस्लिम आक्रमण भी बोल सकते हैं. लेकिन हिन्दुओं की शक्ति उन दिनों वाकई अच्छी थी.
1128 से 1150 ईस्वी तक शूरवीर राजा जयसिंह के कश्मीर पर राज करने का वर्णन है. अब इस समय काल में मुस्लिम लोग कश्मीर में घुसे और उन्होंने युद्ध नहीं किया अपितु भीख के रूप में रहने की जगह मांगी थीं. तबसे यहाँ मस्जिदें बननी लगीं और मुस्लिम लोग अधिक तेजी से जनसँख्या बढ़ाने लगें.
अब जब हिन्दुओं के लिए कश्मीर बना कब्रिस्तान (इतिहास की कलम से जस तक तस)
हिन्दू कश्मीर को इस्लामी राष्ट्र में बदलने के खतरनाक इरादों को इतिहासकार एम डी सूफी ने “कश्मीर” पुस्तक में विस्तार से लिखा है. मुस्लिम इतिहासकार हसन ने अपनी पुस्तक “हिस्ट्री ऑफ़ कश्मीर” में धर्मांतरण जिक्र इस प्रकार किया है कि “सुलतान सिकंदर ने (1393) में शहरों में घोषणा करा दी थी कि जो हिन्दू मुसलमान नहीं बनेगा वह या तो देश छोड़ दे या फिर मार डाला जाए. इस तरह सुल्तान सिकंदर ने लगभग तीन खिर्बार (सात मन ) जनेऊ हिन्दू धर्म परिवर्तन करने वालों से जमा किये और जला दिए. धार्मिक ग्रंथों को जलाया दिया गया, मंदिरों को ध्वस्त कर वहां अनेक मस्जिदें बनवाई गयी.
“अंग्रेज इतिहासकार डॉ अर्नेस्ट ने अपनी पुस्तक “बियोंड द पीर जंजाल” में लिखा है कि “दो-दो हिन्दुओं को एक ही बोर में बंद कर झील में डाल दिया जाता था.
इतिहासकार हसन के अनुसार “सबसे पहले सुलतान सिकंदर की दृष्टि हिन्दू कश्मीर के विश्व प्रसिद्ध मंदिर मार्तण्ड सूर्य मंदिर पर पड़ी. उसने इसे तोड़ देने का निर्णय किया. लेकिन इसे तोड़ने में एक वर्ष का समय लगा और बाद में इसमे लकड़ियाँ भरकर आग लगा दी गयी थी.
इस तरह से जो कश्मीर कभी हिन्दुओं का स्वर्ग होता था, वह धीरे-धीरे हिन्दुओं का कब्रिस्तान बना दिया जाता है. आजादी के बाद पंडितों के साथ जो हुआ, वह तो बस कश्मीर से हिन्दुओं का अंत ही था.
(आप अगर इस बात के सबूत मांगना चाहते हैं तो यह पुस्तक पढ़ सकते हैं और ऊपर वर्णित बातें हमने नहीं लिखी हैं अपितु यह कश्मीर के इतिहास में दर्ज हैं और आप कश्मीर का हिन्दू इतिहास जरूर पढ़ें. हर जगह पुस्तक के स्रोत दिए गये हैं.)