किन्नरों की जिंदगी भी उनसे उम्रभर अन्याय ही करती रहती है.
आज मुख्य समाज से अलग कर दिए गये किन्नरों का जीवन बद से बदत्तर हो चुका है. एक यही मुख्य कारण है कि वह लोग इतने हिंसक हो चुके हैं और बात-बात पर अश्लीलता का प्रयोग करते हैं.
लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में एक ऐसी जगह है जहाँ साल में एक बार भारत सहित दुनिया से आये किन्नर एक जगह मिलते हैं और यह स्थान इन लोगों का तीर्थ स्थान माना जाता है. जी हाँ, अगर आप 13 मई के आसपास तमिलनाडु के विल्लुपुरम ज़िले में जायेंगे तो आप देखेंगे कि यहाँ पर किन्नर शादी कर रहे हैं.
तमिल नव वर्ष की पहली पूर्णिमा को हर साल ऐसा ही होता है जब देश भर के किन्नर विल्लुपुरम का रुख़ करते हैं.
विल्लुपुरम से कुछ ही दूर एक छोटा सा एक गाँव है जिसको कूवगम के नाम से जाना जाता है. इस स्थान को किन्नर अपना तीर्थ स्थान मानते हैं.
कूवगम में महाभारत काल के योद्धा अरावान का मंदिर है. अरावान इन लोगों के भगवान हैं और यह लोग एक दिन के लिए अरावान से शादी रचाने यहाँ तक आते हैं.
क्या है महाभारत की यह कहानी
महाभारत के अन्दर इस कहानी का जिक्र है कि जब पाँडवों को युद्ध जीतने के बाद अरावान की बलि देनी थी. तब अपनी मृत्यु से पहले अरावान ने आख़िरी इच्छा बताई कि वो शादी करना चाहता है ताकि मृत्यु की अंतिम रात को वह पत्नी सुख का अनुभव कर सके. कथा के अनुसार अरावान की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान कृष्ण ने स्वयं स्त्री का रूप लिया और अगले दिन ही वह “विधवा” बन गए.
इसी मान्यता के तहत कूवगम में हज़ारों किन्नर अरावान की दुल्हन बनकर अपनी शादी रचाते हैं और इस शादी के लिए कूवगम के इस मंदिर के पास जमकर नाच गाना होता है जिसे देखने के लिए लोग जुटते हैं.
अरावान से शादी के पीछे की मान्यता है कि एक तो किन्नरों की शादी इच्छा पूरी होतो है और दूसरे कि अगले जन्म में फिर से कहीं इनको यह सब ना झेलना पड़े इसलिए यह लोग शादीकर अपनी तक़दीर के लिखे को बदलने की कोशिश करते हैं.
कैसे जन्म होता है किन्नरों का
प्राचीन ज्योतिष ग्रंथ जातक तत्व में एक जगह एक बात का जिक्र आता है कि किन्नरों की उत्पत्ति कैसे होती है. यहाँ पर एक संस्कृत श्लोक बताता है कि:-
मन्दाच्छौ खेरन्ध्रे वा शुभ दृष्टिराहित्ये षण्ढ़:। षण्ठान्त्ये जलक्षेर मन्दे शुभदृग्द्यीने षण्ढ़:।।
चंद्राकौ वा मन्दज्ञौ वा भौमाकौ। युग्मौजर्क्षगावन्योन्यंपश्चयतः षण्ढ़:।।
ओजक्षारंगे समर्क्षग भौमेक्षित षण्ढ़:। पुम्भागे सितन्द्धड्गानि षण्ढ़:।।
मन्दाच्छौ खेषण्ढ:। अंशेज़ेतौमन्द ज्ञदृष्टे षण्ढ़:।।
मन्दाच्छौ शुभ दृग्धीनौ रंन्घ्रगो षण्ढ़:। चंद्रज्ञो युग्मौजर्क्षगौ भौमेक्षितौ षण्ढ़:।।
इसका अर्थ है कि पुरुष और स्त्री की संतानोत्पादन शक्ति के अभाव को नपुंसकता कहा जाता है. चंद्रमा, मंगल, सूर्य और लग्न से गर्भाधान का विचार किया जाता है. वीर्य की अधिकता से पुरुष (पुत्र) होता है. रक्त की अधिकता से स्त्री (कन्या) होती है. शुक्र शोणित (रक्त और रज) का साम्य (बराबर) होने से किन्नर का जन्म होता है.
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