मोटी सैलरी – शायद ही ऐसा कोई इंसान होगा जो बढिया सैलरी पाने की चाहत ना रखता हो।
इस पूरी दुनिया में जितने भी लोग नौकरी कर रहे हैं वो सब उस जगह जाना चाहते हैं जहां पर बढिया सैलरी मिलती हो। अगर आप भी मोटी सैलरी की चाहत रखते हैं और दुनिया में कहीं भी काम करने को तैयार हैं तो आपको इन जगहों पर जरूर जाना चाहिए।
आज हम आपको उन जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पर सबसे मोटी सैलरी मिलती है। ये लिस्ट 2016 के आंकड़ों पर आधारित है।
१ – अमेरिका
इस लिस्ट में सबसे ऊपर अमेरिका का नाम आता है। सैलरी देने में भी अमेरिका ने बाकी सब देशों को पीछे छोड़ दिया है। यहां पर 31.6 फीसदी टैक्स देने के बाद एक व्यक्ति को साल में औसतन 41,355 डॉलर की सैलरी मिल जाती है।
२ – लक्जमबर्ग
यूरोप में आर्थिक केंद्र के तौर पर लक्जमबर्ग को जाना जाता है। ये यूरोप में स्टील उपलब्ध के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर एक व्यक्ति को सालाना 38,951 डॉलर की सैलरी मिलती है।
३ – नॉर्वे
नॉर्वे को दुनिया के सबसे धनी देशों में से एक माना जाता है। यहां पर प्राकृतिक संसाधनो की कोई कमी नहीं है और शायद इसी वजह से यहां पर सैलरी भी खूब मिलती है। यहां पर औसतन 33, 492 डॉलर सैलरी मिलती है। इसके अलावा यहां पर ओवरटाइम करने पर भी अलग से पैसे मिलते हैं।
४ – स्विट्जरलैंड
इसे दुनिया में सबसे उम्दा देश माना जाता है। सरकारी पारदर्शिता, जीवन की गुणवत्ता, आर्थिक और मानव विकास के लिए प्रसिद्ध स्विट्जरलैंड में एक व्यक्ति की औसत सैलरी 33, 491 डॉलर है। यहां पर सप्ताह में काम करने का समय भी निर्धारित है। यहां पर ज्यादा से ज्यादा सप्ताह में 35 घंटे ही काम करना होगा।
५ – ऑस्ट्रेलिया
ऑयल और मिनरल का सबसे बड़ा निर्यातक देश ऑस्ट्रेलिया में एक व्यक्ति की औसत सैलरी 31,588 है। यहां हर सप्ताह 36 घंटे काम करना जरूरी होता है।
६ – जर्मनी
जर्मनी में बाकी देशों की तुलना में सैलरी कम मिलती है क्योंकि यहां पर लोग अपनी सैलरी में 49.8 फीसदी टैक्स देते हैं। यूरोप में जर्मनी सबसे शक्तिशाली देशों में से एक है। यहां औसतन सालाना सैलरी 31, 252 डॉलर है।
७ – ऑस्ट्रिया
किसी देश के लिए उसके नागरिक कितना महत्व रखते हैं, ये आप ऑस्ट्रिया में देख सकते हैं। ऑस्ट्रिया में उच्च स्तर की इंडस्ट्री काम करती है। यहां लोगों को टैक्स देने के बाद सालाना औसत 31,173 डॉलर सैलरी मिलती है।
सबसे दुख की बात तो ये है कि इस लिस्ट में कहीं भी एशियाई देशों का नाम नहीं आता है। आज़ाद होने के इतने सालों के बाद भी हमारा देश इतना आत्मनिर्भर और संपन्न नहीं बन पाया है कि वो अपने नागरिकों को अच्छी सैलरी तक दे पाए।
जहां दूसरे देशों में नागरिकों को सप्ताह में केवल 35-36 घंटे काम करना होता है वहीं भारत में लोग 12 घंटे से भी ज्यादा समय के लिए मजदूरी करते हैं और तब भी उन्हें सैलरी के नाम पर चिल्लर थमा दी जाती है। यहां पर नौकरी और सैलरी को लेकर कोई नियम नहीं है। यहां सैलरी समय पर मिल जाए वहीं काफी है।
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