दिल्ली में ऐसी कई ऐतिहासिक और प्राचीन जगहें हैं जहां पर पर्यटकों और लोगों की भीड़ लगी रहती है। इन्हीं में से एक है हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह। खास दिनों और मौकों पर इस दरगाह में पैर रखने तक की जगह नहीं होती है।
हजरत निजामुद्दीन औलिया के आगे बड़े से बड़े बादशाह भी अपना सिर झुकाते थे। इस मजार के ठीक सामने हुमांयू का मकबरा है लेकिन इस जगह को हजरत निजामुद्दीन औलिया के नाम से ही जाना जाता है। यहां आने वाला हर शख्स सबसे पहले मजार पर ही आता है।
लोगों के दिलों पर किया राज
कहा जाता है कि हजरत निजामुद्दीन ने दुनियावी तौर पर हूकूमत तो नहीं की लेकिन उन्होंने हमेशा लोगों के दिलों पर राज किया है। पूरी जिंदगी इंसानियत को अपनाया और सभी को प्यार दिया और हर मज़हब के लोगों से मोहब्बत की। इसी वजह से आज हजरत की मजार पर हर धर्म के लोग आकर अपना सिर झुकाते हैं।
दिल्ली के बादशाह भी थे मुराद
दिल्ली के बादशाह भी हजरत निजामुद्दीन औलिया की बात को मानते थे। कहते हैं कि अगर कोई बादशाह हजरत औलिया की बात को नहीं मानता था तो उसकी सल्तनत बहुत जल्दी खत्म हो जाती थी। आज भी हजरत की मजार पर दुआ मांगने वाले लोगों की मुराद जरूर पूरी होती है।
खूबसूरत है हजरत निजामुद्दीन की दरगाह
हजरत निजामुद्दीन दरगाह को बड़े ही खूबसूरत तरीके से बनवाया गया है। इस दरगाह के ऊपर एक गुंबद है जिस पर काली लकीरें बनी हुई हैं जो लाइट पड़ने पर चमकती हैं। इनकी दरगाह के पास ही इनके शागिर्द और खलीफा अमीर खुसरो की भी मजार है।
कहा जाता है कि निजामुद्दीन अपने मुरीद व खलीफा अमीर खुसरो से बहुत मोहब्बत करते थे और इसी वजह से उनकी मजार के पास ही अमीर खुसरो की मजार बनाई गई।
हज़रत निजामुद्दीन सूफी परंपरा के एक महान संत थे जिनकी दरगाह दिल्ली में बनाई गई थी और आज हज़ारों लोग देश और दुनिया से यहां मत्था टेकने आते हैं।
इतिहासकारों की मानें तो मोइनुद्दीन चिश्ती एशिया से लंबा सफर तय करते हुए इस इलाके में पहुंचे थे। दक्षिण एशिया में सूफी परंपरा की नींव उन्होंने ही रखी थी। इसे बाबादकुतुबुद्दीन औलिया ने आगे बढ़ाया और फिर उनसे यही परंपरा हजरत फरीदुद्दीनमसउदरहमतुल्ला के पास पहुंची। इन्हीं के शिष्य और भारत में सूफी परंपरा के चौथे सोपान थे हजरत निजामुद्दीन औलिया जिनकी दरगाह आज दिल्ली में स्थित है। उन्होंने बाबा फरीद को अपना गुरु बनाया और उन्हीं की इजाजत से सूफी परंपरा को मजबूत करने और सूफी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए दिल्ली को अपना केंद्र बनाया।
हजरत औलिया की अपनी कोई संतान नहीं थी लेकिन उनकी बहनों और उस समय के स्थापित सूफियों की पीढियां पिछले 800 साल से इस दरगाह का कामकाम देख रही हैं।
जब कभी भी दिल्ली के दार्शनिक और ऐतिहासिक स्थलों का जिक्र होता है जो हजरत निजामुद्दीन दरगाह का नाम जरूर आता है। अगर आप भी कभी दिल्ली आएं तो हजरत निजामुद्दीन की दरगाह पर जरूर आएं। यहां पर हर गुरुवार की रात को कव्वाली भी होती है जिसे आपने कई फिल्मों में देखा भी होगा।
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