जैसलमेर का खाबा और कुलधरा, भारत का ऐसे गाँव हैं जो सुरंगों के ऊपर बसे हुए हैं.
कहते हैं कि इन 100 सुरंगों में हमारे पूर्वजों का धन छुपा हुआ है. यह शहर 100 सुरंगों का एक शहर है. ऐसा मानना है कि इन गुफानुमा सुरंगों में आज तक जो भी गया है वह वापस नहीं आया है. ये उत्तर में अफगानिस्तान तक जाती हैं और दक्षिण में हैदराबाद तक.
इन सुरंगों के पीछे एक कहानी छुपी हुई है जिसको जानना आपके लिए बेहद जरूरी है. यह कहानी जुड़ी हुई है ब्राह्मणों की कहानी से. ऐसे ब्राह्मण जो अब अपने गावों को छोड़कर जा चुके हैं और इनके 84 गाँव खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं. इन्हीं 100 गुफाओं ने एक समय में इनकी काफी मदद की थी.
कौन थे ब्राह्मण, जिनके थे ये 84 गाँव
कुलधरा, जैसलमेर से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. कहते हैं कि पालीवाल समुदाय के इस इलाक़े में 84 गांव थे और यह उनमें से एक था. मेहनती और रईस पालीवाल ब्राम्हणों की कुलधरा शाखा ने सन 1291 में तकरीबन छह सौ घरों वाले इस गांव को बसाया था. ये गाँव इतने वैज्ञानिक तरीकों से बसाए गये थे कि यहाँ इतनी गर्मी में भी, इनके घर ठन्डे ही रहते थे. इन लोगों को हमारे वेद और शास्त्रों का भरपूर ज्ञान था. इसी ज्ञान से इन्होनें अपने लिए इतना कुछ बना लिया था. जैसलमेर में सबसे ज्यादा लगान यही लोग देते थे. वास्तुशास्त्र का इनकों पूरा ज्ञान था.
एक ही रात में क्यों खाली हो गये ये गाँव
जैसलमेर के दीवान सालमसिंह की बुरी नजर पालीवालों की बेटी पर पड़ गयी. वह इनसे शादी करना चाहता था. लड़की के घर उसने संदेशा भेजा कि अगली पूर्णमासी तक या तो लड़की दे दो, नहीं तो सुबह होते ही वह गाँव पर धावा बोलकर, लड़की को उठा ले जाएगा. 84 गाँव के लोगों ने अपनी पंचायत में यह फैसला लिया कि अपनी लडकी वह दीवान को नहीं देंगे. ब्राह्मणों को यह सही नहीं लगा. वह स्वाभिमान की रक्षा के लिये अपने 84 गांव, एक ही रात में खाली करके चले गए और फिर वह वापिस कभी नहीं लौटे और जाते-जाते दे गए एक श्राप कि दोबारा इन घरों मे कोई बस नहीं पाएगा.
तबसे लेकर आजतक कोई भी यहाँ नहीं बस पाया है. जो यहाँ रहता है, उसके परिवार में किसी ना किसी की मौत जरूर हो जाती है. आज इन गाँवों को पर्यटन स्थल बना दिया गया है. कहते हैं कि यहाँ अब आत्माओं का राज है, जो रात होते ही बाहर आ जाती हैं. इस घटना को 180 वर्ष से ज्यादा समय हो चुका है.
कैसे की थी इन गुफाओं ने ब्राह्मणों की रक्षा
जब पालीवाल ब्राह्मण रात में गाँवों को छोड़ रहे थे, तब दीवान को खबर ना लग जाने के डर से, इन्होनें इन्हीं सुरंगों का प्रयोग किया था. सभी लोग अलग-अलग चले गये थे. इसीलिए कहा जाता है कि हो सकता है यहाँ ये लोग अपना सारा खजाना रखकर गये हो.
पालीवाल इतिहास और आज का दर्द
पालीवाल ब्राह्मण महाराज हरिदास के वंशज हैं. यही लोग महारानी रुक्मणी के पुरोहित थे. इन्होंने ही श्रीकृष्ण के पास रुक्मणी की प्रेमपांती पहुंचाई थी. वे उच्चश्रेणी के सच्चे ब्राह्मण थे. आज पालीवाल लोग दो गुटों में बँट चुके हैं. कुछ लोग राजपूतों में शामिल हो गये हैं, कुछ अपनी बदहाली और बदकिस्मती पर रो रहे हैं. आज आज़ाद भारत में भी इनको इनका हक़ नहीं मिल पाया है.
आज पालीवाल तो इन गाँवों में दिखते नहीं हैं लेकिन ये सुरंगें, इनके स्वाभिमान की कहानी आज भी गा रही हैं. जो भी खजाना खोजने यहाँ आया है, वह फिर दुबारा किसी को नहीं दिख पाया है. खुद सरकार भी यह काम नहीं कर पा रही है. अपनी एक बेटी को बचाने के लिए, क्या कोई इतना बड़ा बलिदान दे सकता है? इतिहास को यह बलिदान याद रखना होगा और इनके आत्म-सम्मान की वापसी के लिए भी प्रयास करने होंगे.
आप भी इन 100 गुफाओं में खजाना खोजने जा सकते हैं, लेकिन जरा संभलकर, क्योकि आपको अपनी जान की जिम्मेदारी खुद लेनी होगी.
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