पालीवाल इतिहास और आज का दर्द
पालीवाल ब्राह्मण महाराज हरिदास के वंशज हैं. यही लोग महारानी रुक्मणी के पुरोहित थे. इन्होंने ही श्रीकृष्ण के पास रुक्मणी की प्रेमपांती पहुंचाई थी. वे उच्चश्रेणी के सच्चे ब्राह्मण थे. आज पालीवाल लोग दो गुटों में बँट चुके हैं. कुछ लोग राजपूतों में शामिल हो गये हैं, कुछ अपनी बदहाली और बदकिस्मती पर रो रहे हैं. आज आज़ाद भारत में भी इनको इनका हक़ नहीं मिल पाया है.
आज पालीवाल तो इन गाँवों में दिखते नहीं हैं लेकिन ये सुरंगें, इनके स्वाभिमान की कहानी आज भी गा रही हैं. जो भी खजाना खोजने यहाँ आया है, वह फिर दुबारा किसी को नहीं दिख पाया है. खुद सरकार भी यह काम नहीं कर पा रही है. अपनी एक बेटी को बचाने के लिए, क्या कोई इतना बड़ा बलिदान दे सकता है? इतिहास को यह बलिदान याद रखना होगा और इनके आत्म-सम्मान की वापसी के लिए भी प्रयास करने होंगे.
आप भी इन 100 गुफाओं में खजाना खोजने जा सकते हैं, लेकिन जरा संभलकर, क्योकि आपको अपनी जान की जिम्मेदारी खुद लेनी होगी.