मां तो फिर भी कभी कभी डांट डपट देती है, ये करो ये ना करो, ये पहनों ये ना पहनों. पर पापा , पापा तो पलकों पर बैठा कर रखते है अपनी परी को.
हर इच्छा पूरी करना, हमेशा हर घडी सहारा बन कर साथ देना. जो बात किसी से ना कह सके वो कितनी आसानी से पापा को कह सकते है.
जवान होने पर कभी कभी पापा से दूरियां बढ़ जाती है, लगने लगता है कि वो अब हमें समझते नहीं है, पर ये एकदम गलत है, जितना एक पिता समझता है उतना हमें कोई नहीं समझ सकता.