भारतीय सिनेमा की सबसे महान अभिनेत्री, एक महानायिका, एक देवी और सबसे बढ़कर, एक औरत, ‘फ़ातिमा रशीद’.
मैं बात कर रहा हूँ ‘नर्गिस’ जी की, जो शादी की बाद बन गईं ‘नर्गिस दत्त’.
कलकत्ता में, 1 जून 1929 के दिन, नर्गिस का जन्म हुआ था. यानी आज इस महान अदाकारा का जन्मदिन है. लेकिन अफ़सोस आज नर्गिस जी हमारे साथ नहीं हैं.
स्वतंत्रता के बाद भारत को एक नई शुरुआत करनी पड़ी थी. सरकार को नई आर्थिक नीतियां बनानी पड़ी थीं और 45 करोड़ की आबादी को कुछ ऐसा चाहिए था जिसे देखकर, महसूस कर, जानकार और पहचानकर वह अपने दुखों को किसी तरह दबा सके!
1940 के दशक में लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने का मोर्चा संभाला राज कपूर और देव आनंद जैसे दिग्गज कलाकारों ने, जो भारत भर में इतने मशहूर हुए कि उनकी फिल्में आज इतने दशकों बाद भी देखी जाती हैं. ऐसे में किसीको ज़रुरत थी की औरतें भी इस क्षेत्र में अपना योगदान दें. औरतों की तरफ से मेरे नज़रिए में सबसे आगे थीं नर्गिस और लता मंगेशकर जी!
अपनी पहली फिल्म तलाश-ए-इश्क़ से लेकर अपनी आखिरी फिल्म, ‘रात और दिन’ तक, नर्गिस ने हर एक फिल्म में अपनी कार्यकुशलता और महानता का ऐसा उदाहरण सबके सामने पेश किया था जैसा शायद कोई और अभिनेत्री नहीं कर पाती.
मुझे ऐसा लगता है कि भले ही कोई विद्या बालन, श्रीदेवी, कंगना रानौत आदि के बारे में कुछ भी कहे लेकिन भारतीय सिनेमा का और मेरे ख्याल से वर्ल्ड सिनेमा की सबसे पहली फेमिनिस्ट(नारीवादी) फिल्म थी ‘मदर इंडिया’. सबसे पहली नारीवादी फिल्म होने के साथ-साथ यह सबसे प्रभावशाली नारीवादी फिल्म थी, है और रहेगी!
राधा, एक अकेली माँ, जो ज़माने से लड़कर अपने बच्चों को पालती है और अंत में सबके भले के लिए अपने बेटे को मारने के लिए तौयार हो जाती है, यह किरदार नर्गिस ने इस तरह से निभाया कि आपको फिल्म में नर्गिस के अलावा और कोई नहीं दिखता!
मदर इंडिया पहली भारतीय फिल्म थी जो ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई थी और इस फिल्म की सबसे अहम् भूमिका निभाई थी नर्गिस जी ने. यह फिल्म इस बात को सिद्ध कर देती है कि ज़रूरी नहीं कि एक फिल्म को कामियाब बनाने के लिए, फिल्म में एक लोकप्रीय अभिनेता हो, 1950 के दशक में, नर्गिस ने इस सोच की धज्जियां उड़ा डाली थीं. एक पुरुष-प्रधान इंडस्ट्री में एक औरत का ऐसा करना उसकी महानता को दर्शाता है.
दरअसल शादी के बाद उनकी अदाकारी में एक नया खुलापन आ गया. उनकी अदाकारी एक तरीके से विकसित हो गई और ‘घर-संसार’, ‘अदालत’ और ‘रात और दिन’ जैसी फिल्में इस बात का सबूत हैं.
नर्गिस ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को एक और बड़ा नाम दिया. उन्होंने एक ऐसे अभिनेता को जन्मा जो शायद बॉलीवुड के सबसे महान अदाकारों में से एक हैं. मैं बात कर रहा हूँ संजय दत्त की!
वे अगर आज के समय पर जिंदा होतीं तो उनकी उम्र 86 साल होती और न जाने वे शायद आज भी फिल्मों में नज़र आती रहतीं. आज के बॉलीवुड में नारी केवल एक आकर्षण के तौर पर इस्तेमाल की जाती हैं. मुझे पूरा यकीन है कि अगर वे आज जिंदा होतीं तो इसके खिलाफ ज़रूर आवाज़ उठातीं.
उनकी मृत्यु 3 मई 1981 में हुई.
नर्गिस जी के जाने के साथ-साथ एक पूरा युग चला गया था.
लेकिन आज के भारतीय सिनेमा की हर एक अभिनेत्री में, मदर इंडिया की वह राधा कहीं न कहीं ज़रूर दिखती है.