सत्यजीत रे की फिल्में नहीं देखने का मतलब है आपने जीवित रहकर भी सूरज-चांद के अस्तित्व को महसूस नहीं किया.
हां सत्यजीत रे को आज भी एक ऐसे फिल्मकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपनी फिल्मों में जिंदगी की छोटी-छोटी बातों को महत्व दिया.
सत्यजीत रे ने भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अलग ही पहचान दिलाई है. इन्होनें अपनी फिल्म को ऑस्कर में भेजना सही नहीं समझा था तो खुद ऑस्कर अवार्ड इनके लिए भारत भेज दिया गया था.
2 मई, 1921 को सत्यजीत रे (सत्यजित राय ) का जन्म बंगाल के एक ऐसे परिवार में हुआ, जो विश्व में कला और साहित्य के लिए विख्यात था.
इनकी पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली‘ को कान फिल्मोत्सव में मिले “सर्वोत्तम मानवीय प्रलेख” पुरस्कार को मिलाकर कुल ग्यारह अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे. विश्व में भारतीय फिल्मों को नई पहचान दिलाने वाले सत्यजित रे को भारत रत्न (1992) के अतिरिक्त पद्म श्री (1958), पद्म भूषण (1965), पद्म विभूषण (1976) और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1967) से सम्मानित हैं.
विश्व सिनेमा में अभूतपूर्व योगदान के लिए सत्यजित रे को ऑस्कर अवॉर्ड से अलंकृत किया गया था. इसके अलावा इन्होंने और इनके काम ने कुल 32 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त किये.
वर्ष 1991 मे प्रदर्शित फिल्म आंगतुक सत्यजीत रे के सिने करियर की अंतिम फिल्म साबित हुई.
अपनी निर्मित फिल्मों से अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले महान फिल्मकार सत्यजीत रे ने 23 अप्रैल 1992 को इस दुनिया को इन्होनें अलविदा कह दिया.