मुता निकाह – इस्लाम के तीन तलाक पर पहले से ही सुप्रीम कोर्ट ने तलवार चला रखी थी के अब एक और निकाह सामने आया है जिसे तीन तलाक से भी ज्यादा खौफनाक माना जा रहा है.
इसके चलते मुसलमानों के एक और अधिकार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा छीना जा सकता है, क्योंकि जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को महिलाओं के साथ ना इंसाफि बताया करार दिया गया था उसी तरह किसी ने मुता निकाह और मिस्यान निकाह के खिलाफ भी कोर्ट में याचिका दाखिल की है.
कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार भी कर लिया है और जल्द ही इस पर फैसला भी सुना देंगे.
इस्लाम धर्म में कई तरह के निकाह होते हैं, जिसमें ज्यादातर मौका परस्त मुसलमान खुद को आजाद करने के लिए तीन तलाक को हथियार की तरह इस्तेमाल करते आए हैं. महिलाओं के साथ ऐसी ना इंसाफि को देखते हुए कोर्ट ने इसे मुसलमानों से छीन लिया. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट से निकाह हलाला, बहुविवाह मुता निकाह के साथ निकाह को खत्म करने की मांग की है. मुता निकाह या मिस्यार निकाह एक समझौते की तरह होता है. इसमें बॉन्ड भरकर निश्चित समय के लिए शादी की जाती है और बॉन्ड की तय की गई अवधि खत्म होते ही पति पत्नी का रिश्ता भी खत्म हो जाता है. इस निकाह के खिलाफ हैदराबाद के मौलिम मोहिसिन बिन हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है और इसे खत्म करने की मांग की है.
मोहसिन ने साथ ही कोर्ट को ये भी बताया की मुता निकाह और मुस्यार निकाह में छह महीने साल दो साल या पांच साल जितना भी समय दोनों पक्षों की मंजूरी के साथ तय किया जाता है उसे रिश्ते समाप्ति का समय करार दिया जाता है. इसके साथ ही मोहसिन ने इस निकाह को खत्म करने की मांग इसलिए की है क्योंकि इसे करने का हक सिर्फ पुरुषों को है कोई भी महिला अपनी मर्जी से ये निकाह नहीं कर सकती.
मुता निकाह और मिस्यार निकाह में समय की अवधि कर के साथ रहने का लिखित करार किया जाता है. अवधि पूरी होते ही निकाह खारिज हो जाता है और महिला को तीन महीने तक एकांत वास करके इसकी अवधि बितानी पड़ती है. इसमें सबसे विचित्र बात ये है की अन्य निकाह की तरह मुता निकाह और मुस्यार निकाह में महिलाओं का अपने पति की संपत्ति पर कोई हक नहीं रहता और साथ ही वा ना उन्हें हिस्सा मांगने का होता है ना ही जीवनयापन के लिए कोई आर्थिक मदद माँगने का.
याचिका में बताया गया है की इस निकाह के दौरान होने वाले बच्चों के भविष्य का कोई भरोसा नहीं होता है. ना ही इन बच्चों को समाज में सम्मान मिलता और इनकी मानसिक स्थिति भी बिगड़ जाती है. इसलिए ऐसे में मुसलमानों में प्रचलित इस निकाह को रद घोषित कर देने में ही सब कि भलाई है. इसके अलावा याचिका में निकाह हलाला और बहुविवाह को भी चुनौती दी गई है.
तो दोस्तों आपका इस मुता निकाह के बारे में क्या सोचना है क्या सुप्रीम कोर्ट को इसे खारिज कर देना चाहिए या नहीं? हमे कमेंट बॉक्स के जरिए अपनी राय जरूर दे.