हिन्दू चमार जाति का उदय प्राचीनकाल में नहीं हुआ था.
ऋग्वेद आदि के आधार पर जिन लोगों ने चर्म-कर्म का अर्थ चमार जाति से लगाया वह गलत है और त्रुटिपूर्ण है क्योकि चर्मकार का आशय चमड़े का कार्य करने वाला होता है न कि इसका अर्थ चमार जाति से है. क्योकि जब तक मुसलमान भारत में नहीं आये तब तक तो चमड़ा ही हिन्दुस्तान में नहीं था. संत रैदास जी को अनुमान हो गया था कि मुसलमान हिन्दुओं को मार-पीटकर अब धर्म परिवर्तन कराने वाले हैं और इसीलिए शायद संत रैदास जी को मुस्लिम शासक ने पकड़कर जेल में डाल दिया था.
वहीँ दूसरी तरफ महाराणा सांगा भी हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए युद्ध लड़ रहे थे. वैसे सांगा ने ही बोला था कि गुरु से सभी उसकी जात नहीं पूछी जाती है बल्कि गुरु से बस ज्ञान लिया जाता है. यही एक कारण था कि बाद में संत रैदास और महाराणा सांगा दोनों गुरु-शिष्य बन गये थे.
तो आज यंगिस्थान आपको बतायेगा कि कैसे इस गुरु और शिष्य ने हिन्दू धर्म की रक्षा की थी और कैसे आज के हमारे इतिहास ने इस गुरु और शिष्य के बलिदान को नजरअंदाज कर दिया है –
कहानी गुरु और शिष्य की –
पहले गुरु रैदास को समझ लो
सिकंदर लोधी हिन्दू लोगों को मारकर और डराकर मुसलमान बना रहा था. दूसरी तरफ जो हिन्दू मुसलमानों ने पकड़े थे उनसे मुसलमान अपने पाख़ाने साफ़ करवा रहे थे. इस तरह के लोगों को नीच बोला गया और इन हिन्दुओं को धर्म से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. तो यह लोग जो हिन्दू धर्म से निकाल दिए गये थे इनके मुसलमान बनने के चांस काफी अधिक थे. तो यह लोग मुसलमान ना बने इसलिए संत रैदास जी ने अपना एक अलग सम्प्रदाय बना लिया था. अब सिकंदर लोधी ने संत रैदास को इसलिए जेल में डाला था वह हिन्दू धर्म को मिटने से बचा रहे थे.
संत रैदास जी को जेल से निकालने के लिए एक बड़ा आन्दोलन हुआ था. लोधी संत रैदास जी को पैसा तक दे रहा था ताकि वह खुद मुसलमान बन जाएँ. किन्तु संत रैदास जी ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए पैसा भी ठुकरा दिया था. हिन्दू धर्म के लिए संत रैदास जी जेल तक गये थे.
अब जरा महाराणा सांगा को पढ़िए
महाराणा सांगा का पूरा ही जीवन युद्धभूमि में बीता था. गुजरात के सुलतान ने इंडर के स्वामी रायमल राठौड़ को हटाकर ईडर पर कब्जा कर लिया था. राणा साँगा रायमल की सहायता के लिए गये और सुलतान निजामुल्मुल्क को युद्ध में हराया था. दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी को इन्होनें धूल में मिला दिया था. महाराणा सांगा को खबर हो गयी थी कि अब भारत पर विदेशी मुस्लिम शासक कब्जा करने लगे हैं. वह चाहते थे कि देश को इस विदेशी खून से मुक्ति दिलाई जाये, किन्तु अन्य राजा महाराणा सांगा की बात को समझ नहीं पाए थे. महाराणा सांगा को संत रैदास जी की खबर लगी और तब यह राजा रैदास जी के पास पंहुचा था.
तब महाराणा सांगा ने रैदास जी को अपना गुरु बनाया था
जब सांगा ने गुरु रैदास जी का इतना संघर्ष जाना तो वह खुद से रैदास जी के पास गये थे और इनको अपना गुरु बनाया था. संत रैदास जी को सांगा अपने राज्य मेवाड़ में ले जाना चाहता था. प्रारंभ में रैदास जी इस बात को मान नहीं रहे थे किन्तु अंत में सांगा ने भी राज-पाठ छोड़ने की बात बोल दी थी. संत समझ गये थे कि वह मेरे बिना अपने राज्य मेवाड़ नहीं जायेगा. तो संत रैदास जी अंत तक अपने शिष्य के साथ मेवाड़ रहे थे.
इस प्रकार गुरु और शिष्य की इस जोड़ी ने हिन्दू धर्म के लिए बड़ी-बड़ी लड़ाई लड़ी हैं.
असल में उस दौर में हिन्दू धर्म का पताका लहराने वाले यही तो योद्धा थे. लेकिन आज का भारत संत रैदास जी और महाराणा सांगा के असली इतिहास को भूल गया है. इससे दुःख भरी बात हिन्दू धर्म के लिए कुछ और नहीं हो सकती है.