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इन्होनें भारत माता के लिए लड़ी थी 14 लड़ाईयां, पिता और चार पुत्र हुए शहीद, लेकिन इतिहास में उस तरह से नहीं मिली जगह

इतिहास में ऐसी वीरता और बलिदान कम ही देखने को मिलता है.

इसके बावजूद इतिहासकारों ने इस महान शख्सियत को वह स्थान नहीं दिया जिसके वे हकदार हैं.

जिस बालक ने स्वयं अपने पिता को आत्मबलिदान के लिए प्रेरित किया हो, क्या संभव है कि वह स्वयं लड़ने के लिए प्रेरित होगा ?

इस महान योद्धा को आज सिर्फ एक धर्म विशेष का बताकर हम बड़ी गलती कर रहे हैं. जबकि यह देशभक्त समूचे देश के लिए लड़ा था. आज हम बात कर रहे हैं श्री गुरु गोविन्द सिंह जी की.

जफरनामा में स्वयं गुरु गोविन्द सिंह लिखते हैं- जब सारे साधन निष्फल हो जायें, तब तलवार ग्रहण करना न्यायोचित है.

पिता, स्वंय और चार पुत्र देशपर कुर्बान

भारत के इतिहास में ऐसा कोई भी योद्धा नहीं हुआ है जिसने देश के लिए इतना बड़ा बलिदान दिया हो. मुग़ल शासकों से लड़ते हुए गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपनी तीन पीढ़ियों का बलिदान दिया है. सबसे पहले पिता गुरुतेग बहादुर, फिर चार बच्चे और अंत में खुद भी देश के लिए शहीद हो गए थे.

जब औरंगजेब में हिन्दुस्थान को पूरी तरह इस्लामी राज्य बनाने की ठान ली थी और जब अकबर की नीतियों के विरुद्ध उसे इस्लाम का जुनून सवार हो चुका था, देश में अंधकार जैसा छा गया था ! तलवार के बल पर धर्मान्तरण, जजिया, हिन्दुओं के सार्वजनिक उत्सवों पर प्रतिबन्ध, तथाकथित ‘काफिरों’ के मंदिरों व तीर्थों का विध्वंस अबाध गति से हो रहा था और उत्तरी क्षेत्रों व राजस्थान से लेकर गुजरात तक उसका आतंक फैला हुआ था.

खालसा पंथ का निर्माण

12 अप्रैल, 1699 का वह दिन आया जब विभिन्न प्रदेशों से सिख आनंदपुर आ पहुंचे.

गुरुगोविन्द सिंह मंच पर पहुंचे और उन्होंने कहा देवी बलिदान चाहती है, क्या कोई शीश देगा? सहसा लाहौर का खत्री दयाराम उठा जिसे वह पर्दे के पीछे ले गए. एक बकरे की बलि चढ़ाई और रक्तरंजित तलवार लिए फिर बाहर आ गये. फिर उसी प्रश्न पर दिल्ली के जाट धरमदास उठ खडे़ हुए. उन्हें भी गुरुजी अंदर ले गए और रक्त से डूबी हुई तलवार लेकर बाहर आ गए.

इसी तरह का प्रश्न दोहराने पर एक के बाद एक-मोहकमचंद, साईं बचन्द तथा हिम्मतराम उठे जिन्हें गुरुजी अंदर ले गए. फिर सभी पांचों को अपने साथ लेकर मंच पर आए. उन्होंने कहा मैंने उन्हें मारा नहीं, ये ही पांचों बलिदानी पंजप्यारे हैं-पांच सिंह हैं. ये ही विशुद्ध खालसा बलिदानी वीर हैं. उस समय 80,000 सिखों ने अमृतपान कर खालसा पंथ का निर्माण किया था जो सदैव कफन सिर पर बांधे युद्ध के लिए तत्पर रहते थे.

यहाँ ली गुरुगोविंद सिंह जी ने आखरी सांस

महाराष्ट्र के नांदेड शहर में स्थित ‘हजूर साहिब सचखंड गुरुद्वारा’ विश्व भर में प्रसिद्ध है.

यहीं पर सिखों के दसवें तथा अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने प्रिय घोड़े दिलबाग के साथ अंतिम सांस ली थी. गुरु गोविंद सिंह जी ने धर्म प्रचार के यहां अपने कुछ अनुयायियों के साथ पड़ाव डाला था, इसी दौरान सरहिंद के नवाब वजीर शाह ने अपने दो आदमी भेजकर उनकी हत्या करवा दी थी. ऐसा कहा जाता है कि यह हत्या धार्मिक तथा राजनैतिक कारणों से कराई गई थी.

आज समूचे भारत को गुरु गोविन्द सिंह जी के बलिदान को समझना होगा. देश के लिए इन्होनें 14 बार युद्ध किया था. आज हम सब आजादी की हवा में सांस ले रहे हैं उसके पीछे इनके बलिदान को हमें नहीं भूलना चाहिए.

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