भारत सरकार ने सोना गिरवी रखा – 1989 के दौर में राजीव गांधी और गवर्नर एस. वेंकटरमन को ये आस थी आने वाले समय में सोना सबसे अच्छा विकल्प होगा।
कहा जाता है कि अगर मंत्रिमंडल राजीव गांधी का साथ देता तो आज देश की आर्थिक सूरत ही कुछ और होती। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री के पद से पदच्यतु हुए तो देश में लाइसेंस परमिट का राज था। हर चीज़ के लिए लाइसेंस की जरूरत पड़ती थी और तब इंडस्ट्री कितना माल बनाएगी, किसे बेचेगी और कितना कमाएगी, ये सब सरकार तय करती थी।
इस वजह से देश की आर्थिक हालत खराब होती जा रही थी। वो क्लोज्ड इकॉनमी का दौर था यानि की कोई विदेशी सीधे भारत या भारत की मार्केट में पैसा नहीं लगा सकता था। इन दो दिक्कतों के कारण कांग्रेस का तख्तापलट हो गया और 1989 में विश्वनाथ प्रताप प्रधानमंत्री बने।
उस समय वित्त मंत्री रहे वीपी सिंह को देश से ज्यादा मंत्रि मंडल की पड़ी थी।
उस दौरान कसटम अधिकारियों ने स्विट्जरलैंड में बेचा गया सोना पकड़ा जिससे भारत को 20 करोड़ रुपए मिले। ये भी भारत की बिगड़ती आर्थिक स्थित के लिए काफी नहीं थे। वेंकटरमन ने इंग्लैंड और जापान के बैंकों से डील पक्की कर ली लेकिन उन्होंने ये शर्त रखी कि वो सोना तभी गिरवी रखेंगें जब भारत से बाहर किसी देख में उसे रखा जाएगा। ये डील 47 टन सोने की थी और ऐसे में दिक्कत थी कि इतने सोने को चोरी-छिपे देश से कैसे पार लगाया जाए। इस बारे में जनता को भनक भी नहीं लगने देना था।
बहरहाल, जुलाई में आरबीआई ने 46.91 टन सोना गिरवी रखा और 400 मिलियन डॉलर देश की आर्थिक स्थिति के लिए जुटाए।
इस गुपचुप डील की खबर इंडियन एक्सप्रेस तक पहुंच गई और उन्होंने इस खबर को छाप दिया। इस खबर के मुताबिक सरकार पूरे देश की जनता से छिपाकर कई टन सोने का विदेश पार कर रही थी।
इस खबर के प्रकाशित होने के बाद मनमोहन सिंह को संसद में सफाई देनी पड़ी कि ऐसा करना जरूरी हो गया था और ये सब बहुत दुखइाई था। उसी साल देश की आर्थिक हालत में सुधार हुआ तो सोना वापिस मंगवा लिया गया। 1991 से शुरु हुआ तूफान उसी साल दिसंबर महीने में खत्म हो गया। उस समय सोने को गिरवी रखकर देश की आर्थिक स्थिति को सुधारा गया था और ये वाकई में हुआ भी था।
उस दौर में सोना गिरवी रखने वाली कांग्रेस ने साल 2009 में 200 टन सोना खरीदकर देश की गोल्ड रिजर्व को मजबूती दी। इतनी जल्दी कांग्रेस और देश के हालातों में बदलाव आया।
तो कुछ इस तरह देश से रातोंरात चुपके-चुपके 45 से 50 टन सोना देश से बाहर निकाला गया और राजनीतिज्ञ एवं नेताओं ने इस बात की खास कोताही बरती थी कि देश की जनता को इस बात की खबर ना हो क्योंकि इससे सरकार के प्रति उनका विश्वास डगमगा सकता था इसलिए उन्होंने इस पूरी प्रक्रिया को गुप्त रखने की कोशिश की थी।
लेकिन आज ही की तरह उस दौर में भी मीडिया ने सरकार की नाक में दम कर रखा था और इस पूरी गुप्त प्रक्रिया का भंडाफोड कर दिया।