स्त्री की असली पहचान – भारत भले ही हमेशा से एक पुरुष प्रधान देश माना गया हो लेकिन इसके इतिहास में कई बार स्त्रियों ने खुद को पुरुषो से कई गुना बेहतर साबित कर के दिखाया है.
हमारी भारतीय संस्कृति के इतिहास के पन्नों को यदि उठा कर देखा जाए तो स्त्रियों को लेकर अनेक प्रकार की बाते बताई गई हैं. जिनमें से कई सच हैं तो कई झूठ. इतिहासकारों द्वारा उनकी तुलना किसी ना किसी रूप में की जाती आई है.
आज हम आपको बताएंगे की वासुदेव के अनुसार आखिर स्त्री की असली पहचान क्या है. वासुदेव को गीता में भगवान श्री कृष्ण का आठवाँ अवतार बताया गया है, भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पटरानी सत्यभामा की तुलना नमक से की थी सत्यभामा अत्यंत सुंदर और एक योद्धा थी उसे अपने आप पर बहुत घमंड था. और कहा जाता है की घमंड तो राजा रावण का नहीं रहा तो किसी का क्या रहेगा.
ठीक उसी तरह भगवान श्री कृष्ण ने घमंडी सत्यभामा के घमंड को स्वयं नष्ट किया था. श्री कृष्ण ने जान बूझ कर सत्यभामा को गुस्सा दिलाने के लिए उसकी तुलना नमक से की और उनके विचार अनुसार सत्यभामा क्रोधित भी हो उठी. लेकिन इसके बाद श्री कृष्ण ने उन्हें मनाया और समझाया की जिस तरह नमक की अहमियत हर तरह के भोजन में होती है उसी तरह स्त्री की भी अहमियत संसार के हर कार्य में होती है. श्री कृष्ण ने साथ ही कहा की स्त्री जल समान होती हैं. जिसके साथ भी मिलती हैं उसका ही गुण अपना लेती हैं.
स्त्री नमक की तरह इसलिए बताई गई हैं क्योंकि स्त्री नमक की तरह अपना अस्तित्व मिटाकर भी अपने प्रेम-प्यार तथा आदर सत्कार से परिवार को जीवन भर बांधे रखती हैं और कभी किसी भी प्रकार की समस्या में उन पर आंच नहीं आने देती. स्त्री अपने परिवार के सभी सदस्यो को एक दूसरे से जोड़ कर रखती है और अपने परिवार को हमेशा खुश रखती है.
श्री कृष्ण स्त्रियों के गुण के बारे में स्त्री की असली पहचान के बारे में आगे बताते हुए कहते हैं की पुरुष जो सोचते हैं की महिलाए उनके आगे कुछ नहीं है वह केवल उनकी सेवक हैं वह दुनिया के सबसे मूर्ख होते हैं क्योंकि असल में स्त्रियां ही वो हैं जिन्होंने इस विश्व को सही मानिए में संजोता है. अगर स्त्रियां ना हो तो जीवन में समझ लीजिए कुछ भी नहीं है. ना प्रेम ना आदर ना माँ ना बच्चे.
हम सभी को हर स्त्री की इज्जत करनी चाहिए क्योंकि वह सभी देवियों का ही रूप है जो इस धरती पर रह रही हैं. यदि कोई इंसान उनका निरादर करता है तो वह गीता के अनुसार पाप का भागीदारी होता है.
ये है स्त्री की असली पहचान – तो दोस्तो अब तो आप समझ ही गए होंगे की स्त्रियों का इस दुनिया में कितना महत्वपूर्ण योगदान है. वासुदेव द्वारा गई यह सभी बाते गीता में लिखी हुई हैं और कहा जाता है कि गीता से बड़ कर इस दुनिया में और कोई सत्य नहीं. गीता में लिखा एक-एक शब्द सच है जिसे स्वयं वेद व्यासा द्वारा लिखा गया था. भगवत गीता का हिंदू धर्म में बहुत बड़ा महत्व है.
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