छत्तीसगढ़ की गोदना कला – बॉलीवुड इंडस्ट्री और क्रिकेट की दुनिया में कई ऐसे सितारे हैं जो टैटूज के दीवाने हैं. सिर्फ सितारे ही नहीं बल्कि आज के युवाओं पर भी टैटू बनवाने की खुमारी छाई हुई है. यही वजह है कि अधिकांश लोग अपने शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर मॉडर्न और आर्टिस्टिक टैटूज डिजाइन करवाते हैं.
आज के युवा भले ही आर्टिस्टिक टैटूज के दीवाने हैं लेकिन ये कला बेहद पुरानी है. खासकर छत्तीसगढ़ की गोदना कला को देखकर हर कोई यही कहेगा कि आधुनिक जमाने के टैटू इसी पुरानी कला का एक नया अंदाज है. छत्तीसगढ़ की गोदना कला बेहद अनूठी और पुरानी मानी जाती है.
छत्तीसगढ़ की गोदना कला
छत्तीसगढ़ की गोदना कला सालों से लोगों के आकर्षण का खास केंद्र रही है. हालांकि बदलते जमाने के साथ-साथ गोदना की जगह मॉडर्न टैटूज ने ले ली है बावजूद इसके पारंपरिक गोदना कला अपनी एक अलग ही पहचान रखता है.
एक जमाने में आदिवासी तबके के लोग अपने पूरे शरीर में गोदना गुदवाते थे यहां तक की शादीशुदा महिलाएं भी अपने हाथों पर गोदना गुदवाती थीं. लेकिन बदलते दौर के साथ अब इस गोदना कला का अंदाज भी बदल गया है.
कपड़ों पर हुआ गोदना कला का विस्तार
अब इस कला को शरीर पर नहीं बल्कि कपड़ों पर उतारा जाता है. आपको बता दें कि साड़ियों व कपड़ों पर बनने वाली गोदना कला पहले काफी सीमित थी, इसे सिर्फ घर की चीजों और पहनने के कपड़ों पर इस्तेमाल किया जाता था.
बीते कुछ समय में छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड ने इस कला से जुड़े कलाकारों को बेहतर बाजार उपलब्ध कराया है. जिसके चलते अब इस कला को विदेशों में भी अपनी पहचान मिल गई है.
गोदना के आगे फेल हुए मॉडर्न टैटूज
खास बात तो यह है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में भी छत्तीसगढ़ की गोदना कला ने लोगों को खासा आकर्षित किया था. इस कला को जिसने भी देखा वो उसका मुरीद हो गया. आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ की आदिवासी महिलाएं इस पारंपरिक कला को जीवित रखने के लिए साड़ियों और कपड़ों पर इसे उकेरती हैं, जिसकी मार्केट में काफी डिमांड भी है.
साड़ियों और कपड़ों पर उकेरी गई पारंपरिक गोदना कला को देखकर ऐसा लगता है मानों इस कला के आगे आज के मॉडर्न टैटू भी फेल हैं. यही वजह है कि छत्तीसगढ़ की आदिवासी महिलाओं द्वारा कपड़ों पर दिखाई गई इस कला को सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी सराहा गया.
दरअसल साड़ियों पर गोदना कला से चित्रकारी करना काफी मेहनत का काम होता है. कपड़ों पर गोदना कला से चित्रकारी करके छत्तीसगढ़ की इस पारंपरिक कला को फिर से एक ब्रांड के रुप में स्थापित करने की कोशिश की जा रही है. यहां की आदिवासी महिलाएं पारंपरिक गोदना कला का इस्तेमाल करके चादर, टेबल कवर और साड़ियां डिजाइन करती हैं जो लोगों को बेहद पसंद आती हैं.
ये है छत्तीसगढ़ की गोदना कला – मॉडर्न टैटूज के बाजार में आ जाने से पारंपरिक गोदना कला अपना अस्तित्व खोने लगी थी, लेकिन अब शरीर के अंगों के बजाय कपड़ों पर गोदना कला का नज़र आना, इस बात का प्रमाण है कि ये कला अभी तक लुप्त नहीं हुई है बल्कि यह कला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी लोगों के दिलों को जीतने में कामयाब रही है.
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