दुनिया की हर शक्ति, एक देवी शक्ति के सामने आकर झुक जाती है.
हमारे प्राचीन ग्रन्थ, काव्य, वेद, पुराण, शास्त्र, सब में देवी शक्ति को सर्वोच्च शक्ति माना गया है. लेकिन क्या आपने सोचा है कि हमारे पूर्वजो ने देवी शक्ति को उच्च और सबसे बड़ी शक्ति क्यों कहा?
ब्रम्हा – विष्णु – महेश, जिन्हें त्रिदेव कहा जाता है उन्होंने भी देवी शक्ति को श्रेष्ठ माना क्यों?
कई लेखकों ने स्त्री की निंदा की, स्त्री का अपमान किया लेकिन देवता और ऋषि स्त्री अपमान करने से बचते थे क्यों ?
वर्तमान समय में समाज, समाज के लोग, स्त्री की जितनी भी निंदा कर ले लेकिन हमारे समाज में देवी शक्ति ही सबसे बड़ी शक्ति मानी जाती है.
देवी शक्ति से अभिप्राय स्त्री या नारी शक्ति से होता है.
प्राचीन काल से ही देवियों की पूजा की जाती रही है और देवी को सबसे शक्तिशाली कहा गया क्योंकि स्त्री से ही पूरे विश्व का निर्माण हुआ है और होता है.
प्राचीन मिथक के अनुसार दुनिया की हर वस्तु की उत्पत्ति स्त्री जाति से मानी जाती है. जिस दिन सृष्टी की सारी स्त्रीजाति एक होकर जीवन जन्म देना बंद कर देगी, उस दिन सृष्टी में जीवों की उत्पत्ति रुक सकती है,
दुनिया में संतुष्ट और संतृप्त करने वाली वस्तु को स्त्री की संज्ञा दी गई है – जैसे धरती, प्रकृति, नदी, अग्नि, सबको स्त्री की संज्ञा दी गई. सृष्टी का अंत इन्ही चार चीजो से होता है
स्त्री के सम्मान और अपमान से तय होता है कि उस युग का उल्लेख, लेखन ,वर्णन और अंत कैसा होगा. जैसे सृष्टी की रचना स्त्री से होती है ठीक उसी तरह सृष्टि का अंत भी स्त्री से ही होता है.
स्त्री जननी भी है, स्त्री हरनी भी है.
स्त्री से ही इंसान के शरीर का जन्म होता है और स्त्री से ही शरीर का अंत किया जाता है,
देवता और प्राचीन ज्ञानी जानते थे की सृष्टी स्त्री से बनी है और स्त्री से आगे बढ़ रही है और स्त्री में ही (धरती में ) समां जाती है इसलिए देवी शक्ति को सबसे बड़ी शक्ति मानते थे .