पुत्र प्राप्ति के बाद परिवार को अपने पुत्र के साथ फिर से मंदिर में माथा टेकने आना होता है और साथ में एक नया लकड़ी का गुड्डा चूड़ामणि माता को चढ़ाना होता है.
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 18 वीं सदी में एक राजा ने करवाया था. एक बार शिकार खेलने गए राजा जब विश्राम कर रहे थे तो उन्हें देवी के पिंडी रूप में दर्शन हुए. जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने उस स्थान पर देवी की पिंडी देखि. देवी का आदेश मानकर उस स्थान पर राजा ने भव्य मंदिर का निर्माण करवाया.
इस मंदिर से जुडी एक और कथा भी है जो शिव और सती से जुडी है.