जलवायु परिवर्तन – धरती का तापमान बढ़ रहा है। साल दर साल गर्मी नए तापमान पर पहुंचने का रिकॉर्ड तोड़ते जारी है जिसके कारण सुदूर आर्कटिक की बर्फ पिघल रही है।
जलवायु परिवर्तन की वजह से सुदूर ध्रुव में बर्फ का पिघलना इस सदी के शुरुआथ में शुरू हुआ था जिसकी चेतावनी वेज्ञानिकनों ने नब्बे के 20वीं सदी के खत्म होने के दौरान दे दी थी। लेकिन उस समय विकास करने का दौर था और हर देश अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित अर्थव्यवस्था बनाना चाहता था इसलिए चेतावनी पर किसी का ध्यान नहीं गया।लेकिन 2010 के आते-आते तक सुदूर ध्रुव की बर्फ इतनी पिघल गई और मौसम में इतना अधिक बदलाव हुआ कि जिसे नजरअंदाज करना किसी भी देश के लिए नामुमकिन हो गया। इसकी को देखते हुए कई सारी संधियां की गईं की अब दुनिया का तापमान को इतने ही स्तर पर रखते हैं।
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बर्फ पिघलनी शुरू हो चुकी थी और दुनिया में आर्कटिक का मैप बदलना शुरू हो गया था। जिसने पूरी दुनिया को चंतित कर दिया। लेकिन इस चिंता में एक बात अच्छी हुई।
जलवायु परिवर्तन –
बुरे के साथ अच्छा भी
कहते हैं ना कि हर चीज का एक बुरा पक्ष होता है और एक अच्छा पक्ष भी। ग्लोबल वार्मिंग के साथ भी ऐसा ही है। ग्लोबल वार्मिंग से जहां मौसम में बदलाव हो गया है और सुदूर ध्रुव की बर्फ पिघलने लगी है वहीं इससे कुछ अच्छा भी हुआ है। इससे नया समुद्री मार्ग खुल रहा है।
दुनिया के लिए अभिशाप ग्लोबल वार्मिंग ने खोले नये समुद्री रास्ते
वैसे तो दुनिया के लिए ग्लोबल वार्मिंग अभिशाप है और इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन इस अभिशाप में भी छोटा सा वरदान छुपा है। दरअसल इस ग्लोबल वार्मिंग से नए समुद्री रास्तों की खोज हो रही है जिसके कारण यह समुद्री रास्ते से कारोबार करने वाले लोगों के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं साबित हो रही है। इसी प्रक्रिया के चलते पृथ्वी के उत्तरी समुद्री रास्ते से इस वर्ष पहले के मुकाबले कहीं अधिक मालवाहक जहाज गुजर रहे हैं।
पूरे साल खुला रास्ता
पहले आर्कटिका से होते हुए गुजरने वाला समुद्री रास्ता साल में तीन महीने ही खुलता था लेकिन ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इस वर्ष यह अधिक समय तक आवाजाही के लिए खुला हुआ है। यह रास्ता दक्षिणी जल मार्ग के मुकाबले तकरीबन छह हजार किमी छोटा है। इस साल आर्कटिक में तापमान 30 डिग्री तक पहुंचने के कारण भारी मात्रा में बर्फ पिघली है। इससे मालवाहक कंपनियों को भले ही फायदा मिल रहा हो, लेकिन यह पर्यावरण संतुलन के लिहाज से ठीक नहीं है।
रूस ने खोजा रास्ता
इस समुद्री रास्ते की खोज रूस ने की है। यह समुद्री रास्ता रुस की उत्तरी सीमा से होकर गुजरता है जिससे पूर्वी एशिया और पश्चिमी यूरोप (वर्तमान में मलक्का स्ट्रेट, हिंद महासागर, एडन की खाड़ी और स्वेज नहर से होकर जाने वाला रास्ता) के बीच की दूरी 21,000 किलोमीटर से घटकर 12,800किलोमीटर करता है। इस नए रास्ते से यात्रा करने में केवल 10-15 दिनों का समय लगेगा।
बना एशिया और यूरोप के बीच नया समुद्री रास्ता
इस नए रास्ते के खोज के बाद एशिया और यूरोप के बीच की दूरी कम हो गई है। इसका परीक्षण भी सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। दुनिया के सबसे बड़े कंटेनर शिपिंग समूह एपी मार्लर-मर्स्क के जहाज ने रुसी आर्कटिक से होते हुए परीक्षण यात्रा सफलतापूर्वक पूरी कर ली है। यह जहाज 22 अगस्त को उत्तरी प्रशांत महासागर में रुस के व्लादिवोस्तक से निकलकर फिनलैंड की खाड़ी स्थित पीटर्सबर्ग पहुंच गया।
पिघल रही बर्फ, बन रहे नये रास्ते
इन नए मार्गों के बनने के तीन कारण हैं-
यह रास्ते अचानक नहीं बने हैं। बल्कि यह वर्षों से पिघल रही बर्फ का नतीजा है। वर्षों से पिघल रही बर्फ के कारण समुद्री बर्फ ने इस रास्ते को जहाजों के लिए खोल दिया है।
वैज्ञानिकों ने समुद्री बर्फ के पिघलने की मांग थी जिसके बाद यह पता चलता है कि 1980 के दशक के बाद से आर्कटिक महासागर को ढकने वाली समुद्री बर्फ का विस्तार साल-दर-साल घटता गया।
जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप आर्कटिक के कुछ हिस्सों में वार्मिंग बहुत तेज गति से होती है। वर्षों से जमी हुई मोटी बर्फ की परत का गायब होना इसी बात की निशानी है।
तापमान वृद्धि का गंभीर असर
यह एक तरह से तापमान वृद्धि का गंभीर असर है और अगर इस रास्ते को व्यापार के लिए यूज़ किया जाता है तो वहां बर्फ के पिघलने की रफ्तार और अधिक तेज हो सकती है। यह चिंतन का विषय इसलिए है क्योंकि समुद्री यातायात से सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन होता है। जबकि व्यापारियों का अनुमान है कि ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने के साथ 2030 तक आर्कटिक से गुजरने वाले समुद्री रास्ते में चार फीट मोटी बर्फ तोड़ने में सक्षम जहाज भी आवाजाही कर सकेंगे। 2045 से 2060 तक आर्कटिक की बर्फ के लगातार पिघलने से सामान्य मालवाहक जहाज भी आसानी से इस रास्ते से गुजर सकेंगे।
जलवायु परिवर्तन – यह एक तरह से खतरे का संकेत है जिसके बारे में आम लोगों को शायह ही अंदाजा है और इस चीज का फायदा ही व्यापारी और ट्रेडर्स उठा रहे हैं। देखते हैं कि इसमें अन्य देशों और संयुक्त राष्ट्र की कितनी भागीदारी होती है।
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