भगवान से प्रार्थना – प्रार्थना का मतलब सिर्फ बैठकर मंत्रों का जाप करना ही नहीं होता है बल्कि इसमें आपको सच्चे मन से ईश्वर की आराधना भी करनी होती है।
भगवान से प्रार्थना करने के लिए मन का निर्मल, शांत और ध्यान अवस्था में होना जरूरी होता है। वैदिक पद्धति में प्रार्थना के पहले ध्यान किया जाता है और प्रार्थना के उपरांत भी ध्यान होता है। एकाग्र मन से की गई प्रार्थना और भी शक्तिशाली हो जाती है।
जब कभी भी आप भगवान से प्रार्थना करें तो पूरी तरह से निमग्न हो जाएं।
अगर मन पहले से ही कहीं और भटक रहा है तो ऐसे में आप भगवान से प्रार्थना नहीं कर सकते हैं। जब आपको कोई दुख हो तो आपका मन वहीं लगा रहता है और आप एकाग्रचित होकर प्रार्थना नहीं कर पाते हैं। इसी वजह से लोग दुख में ज्यादा सुमिरन करते हैं।
प्रार्थना आत्मा की पुकार होती है और ये आपके मन से ही निकलनी चाहिए।
भगवान से प्रार्थना – कब सुनेंगें प्रार्थना
जब आप कृतज्ञता महसूस कर रहे होते हैं, तब प्रार्थना की जाती है या फिर जब आप अत्यंत निसहाय या निर्बल महसूस कर रहे होते हैं।
इन दोनों ही परिस्थितियों में आपकी प्रार्थना की पुकार सुनी जाएगी।
जब हम निसहाय महसूस करते हैं तो हमारे मन से अपने आप ही प्रार्थना निकलती है। इसलिए कहते हैं कि निर्बल के बल राम – अगर आप कमज़ोर हैं तो ईश्वर आपके साथ है। प्रार्थना उस क्षण घटित होती है जब आपको अपनी सीमित क्षमता का बोध होता है।
जब हमें विपरीत परिस्थितियों में लगने लगता है कि हम कमज़ोर पड़ रहे हैं या हमारा साथ देने के लिए कोई नहीं है तो हम ईश्वर को सबसे पहले याद करते हैं।
ये महत्वपूर्ण नहीं है कि आप किस की प्रार्थना कर रहे हैं। प्रार्थना में प्रयोग किए जाने वाले शब्द, प्रतीक और अनुष्ठान किसी धर्म विशेष के द्वारा दिए गए हो सकते हैं लेकिन प्रार्थना उन सबसे परे होती है।
भगवान से प्रार्थना भावनाओं के सूक्ष्म स्तर पर घटित होती है और भावनाएं शब्द और धर्म से दूर है। प्रार्थना से आपके कर्म में बदलाव आ सकता है। सच्चे दिल से की गई प्रार्थना से मनुष्य के शरीर में शक्ति का संचार होता है। दिव्य शक्ति के साथ अपनी चालाकी दिखाने का प्रयत्न ना करें।
कुछ लोग अपने बचे हुए समय में भगवान से प्रार्थना करते हैं, जब उनके पास कोई काम नहीं होता, कोई मेहमान नवाज़ी नहीं करनी होती है या किसी पार्टी में नहीं जाना होता है तब वो अपने ईश्वर को याद करते हैं।
ईश्वर को दिया गया ऐसा समय बढिया नहीं होता है। आप अपना सर्वश्रेष्ठ समय दिव्यता के लिए निकालें तो निश्चय ही आपको उसका उचित प्रतिफल मिलेगा। अगर आपकी प्रार्थना नहीं सुनी जाती तो वह इसलिए क्योंकि आपने अपना सर्वश्रेष्ठ समय उसे कभी नहीं दिया होता।
अब जब कभी भी आप भगवान से प्रार्थना करें तो इस बात को ध्यान रखें कि जब आपके पास ईश्वर के लिए समय नहीं है तो ईश्वर भी आपके लिए समय क्यों निकालें। जो लोग सच्चे मन से उन्हें याद करते हैं वो उन पर ध्यान देंगें आप पर नहीं। इसलिए अगर आप अपनी प्रार्थना को ईश्वर तक पहुंचाना चाहते हैं तो इन बातों का ध्यान रखें।
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