स्कूल यूनिफार्म – कहने को तो स्कूलों का काम बच्चों के ज्ञान के साथ ही उनकी सोच को भी विकसित करना होता है।
मगर अधिकतर मामलों में स्कूल मैनेजमेंट ही छोटी सोच का निकलता है। हमारे देश में तो कुछ स्कूलों में लड़के-लड़कियों का अलग बैठना, स्कर्ट्स की जगह सूट पहनना जैसे नियम लागू है ही, मगर अन्य देशों में भी स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नहीं है। मुस्लिम देशों में जहां लड़कियों का स्कूल जाना मुश्किल है। वही यूके जैसे विकसित देश के स्कूलों में सीनियर गर्ल्स स्टूडेंट्स के स्कर्ट्स पहनने पर रोक लगाकर उन्हें सोबर सूट पहनने की हिदायत दी जाती है।
इन सब नकारात्मक खबरों के बीच हाल ही में ऑस्ट्रेलिया से एक सकारात्मक खबर आई है। यहां स्कूलों में बच्चियों को शॉर्ट्स व पैन्ट्स पहनने की अनुमति दी जाएगी। यह निर्णय एक नेक मकसद से लिया गया है।
आइए डालते हैं एक नजर स्कूल यूनिफार्म के मामले पर –
नई यूनिफार्म पॉलिसी
ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में स्थानीय प्रशासन ने यूनिफार्म पॉलिसी में बदलाव किए हैं। इस बदलाव के तहत अगले साल से क्वींसलैंड के स्टेट स्कूल्स में सभी लड़कियां शॉर्ट्स या पैंट्स पहन सकेंगी। क्वींसलैंड में अब भी 40% लड़कियों को स्कूलों में ड्रेस (ट्यूनिक) पहननी पड़ती है।
यह है मकसद
इस निर्णय के संबंध में क्वींसलैंड की स्टेट एजुकेशन मिनिस्टर का कहना है, “क्वींसलैंड की सभी लड़कियों को प्रत्येक एक्टिव प्ले व क्लासरूम एक्टिविटीज में शामिल होने या बाइक राइड करने का मौका मिलना चाहिए। उनकी यूनिफार्म इस काम में आड़े नहीं आना चाहिए।”
हिचकिचाती है लड़कियां
लड़कियों के एक्टिविटी लेवल व स्कूल यूनिफार्म पर की गई रिसर्च के अनुसार यदि लड़कियां ड्रेस या स्कर्ट पहने होती है तो स्कूल एक्टिविटीज में कम हिस्सा लेती हैं।
2012 में यूनिवर्सिटी ऑफ वोलांगोंग में हुई एक अन्य स्टडी के हिसाब से लड़कियां लंच टाइम गेम्स से खुद को दूर रखती हैं, क्योंकि उन्हें स्कर्ट उड़ने का डर लगा रहता है।
यहां पिछले साल हुआ था लागू
वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया और विक्टोरिया में पिछले साल ही ड्रेस कोड रूल्स में इस तरह के बदलाव किए गए थे। क्वींसलैंड में भी लगभग 60% स्कूलों में पहले से ही लड़कियों के लिए यह ऑप्शन उपलब्ध है। इसे 100% तक पहुंचाने के लिए यह पॉलिसी लाई जा रही है ।
ऐसा है बदलाव का परिणाम
यहां के ‘Stretton State College’ स्कूल में लड़कियों को यूनिफार्म ऑप्शंस दिए जा रहे हैं। इस पॉलिसी से आए बदलावों के बारे में स्कूल की एग्जीक्यूटिव प्रिंसिपल ने बताया, “पूरी स्कूल कम्युनिटी से चर्चा के बाद यह पता चला कि हमारे प्राइमरी स्कूलों की लगभग आधी बच्चियां स्कूल में स्कर्ट नहीं पहनना चाहती थीं।
हमने बच्चियों की सुनी और उनके यूनिफार्म में बदलाव किए, ताकि वो उसमें सहज रहें।
अब आप हमारे स्कूल में आइए और देखिए कि लड़कियां बिना किसी रोक-टोक के फुटबॉल को किक मार रही हैं, हैंडबॉल से खेल रही हैं, पेड़ के नीचे लेटकर आराम से किताबें पढ़ रही हैं और मंकी बार्स पर भी लटक रही हैं।
इस बदले हुए ड्रेस कोड को स्कूल कम्युनिटी की ओर से पूरा सहयोग मिला है और बच्चियां खुद इस प्रकिया का हिस्सा थी।”
यह खबर सकारात्मकता से भरपूर है। कोई लड़कियों की भलाई के बारे में इतना सोचता है यह जानकर ही आश्चर्य होता है। अन्य देशों के स्कूलों को भी लड़कियों को प्रोत्साहित करने के प्रयास करने चाहिए।
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