ENG | HINDI

क्या आज की लडकियाँ अपनी आज़ादी का ग़लत फ़ायदा उठा रही हैं?

आज़ादी का ग़लत फ़ायदा

ये एक ऐसा सवाल है, जो हर मोहल्ले, बाज़ार, चौपाल, महिला मंडली की शान हैं.

ऐसा लगता है कि इसके बिना उनकी चौपाल ख़त्म ही नहीं होती. आज से नहीं, बल्कि ज़माने पहले से ये प्रथा चली आ रही है कि ये समाज ऊंगली उन्हीं लोगों पर उठाता है, जो उसका जवाब नहीं दे पाते.

ऐसा ही एक सवाल है कि क्या आज की लड़कियां अपनी आज़ादी का ग़लत फ़ायदा उठा रही हैं.

इस तरह का सवाल करने पर लोग एक बार भी नहीं सोचते कि आख़िर वो ऐसा कह ही क्यों रहे हैं, क्या इन लड़कों के लिए आज ज़माना नहीं बदल गया. धोती-कुर्ते के बजाय वो पैंट-शर्ट में आ गए हैं. लेकिन नहीं, जैसा कि मैंने पहले ही कहा ये समाज पुरुष प्रधान है, तो ज़ाहिर पर ऊंगली तो औरतों पर ही उठेगी.

अब सवाल ये उठता है कि क्या सच में लड़कियां अपनी आज़ादी जो उन्हें घरवाले देते हैं, उसका वो ग़लत फ़ायदा उठा रही हैं? क्या लड़कियां वाकई में आज़ादी का ग़लत फ़ायदा उठा रही है ?

इंडिया से ऑस्ट्रेलिया जा बसीं स्वप्ना कहती हैं कि ऐसा बिल्कुल नहीं है. लडकियाँ आज़ादी का ग़लत फ़ायदा नहिं उठा रही है.  लड़कों से ज़्यादा लड़कियां अपनी आज़ादी का ख़्याल रखती हैं और उससे कहीं ज़्यादा वो संजीदा हैं.

मुंबई की आराधना का कहना है कि ये सब सिर्फ़ बाते हैं. लोगों को कुछ मिलता नहीं, तो वो लड़कियों पर ही अपनी स्किल दिखाने लगते हैं.

हर जगह अगर किसी बात की चर्चा होती है, तो वो सिर्फ़ लड़कियों के पहनने, स्टाइल, बात करने, रात में घूमने, लड़कों से दोस्ती करने आदि पर होती है, लेकिन कभी भी किसी मोहल्ले या घर में लड़कों पर बात नहीं होती.

क्या वो आज़ादी का ग़लत फ़ायदा नहीं उठाते?

आज लड़कों के कारण ही लड़कियों को समाज में शर्मिंदा होना पड़ता है. कहीं मास मॉलेस्टेशन होता है, तो कहीं अकेली लड़की को देखकर पागल कुत्ते की तरह ये वर्ग उन पर टूट पड़ता है. तो सोचना तो उन लोगों को चाहिए कि आख़िर सही मायने में आज़ादी का ग़लत फ़ायदा कौन उठा रहा है.

इस मुद्दे पर जितना भी लिखा जाए कम हैं, लेकिन एक बात तो तय है कि समाज को इस विषय पर अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है. एकांगी होकर सोचना पूरी तरह से ग़लत है.