खतना – कुछ देशों में लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता है.
ये बेहद दर्दनाक होता है. भारत के कुछ हिस्सों में भी लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता है.
लड़कियों की दशा पूरे विश्व में एक जैसी ही है. कहीं भी उन्हें लड़कों की तरह नहीं रखा जाता. कुछ देश तो ऐसे हैं जहाँ पर लड़की के पैदा होते ही उसका एक अंग काट दिया जाता है. कुछ देशों में इसे कानूनी माना जाता है तो कहीं कहीं गैर कानूनी, लेकिन इसका फर्क कुछ लोगों पर बिलकुल नहीं पड़ता. वो तो बस अपने घिनौने काम में लगे रहते हैं.
लड़कियों के पैदा होते ही उनके एक अंग को काट दिया जाता है.
असल में इस प्रक्रिया को खतना कहा जाता है. आप सोच रहे होंगे कि ये तो मुस्लिम पुरुषों में किया जाता है. लड़कियों को इससे दूर रखा जाता है, लेकिन ये सच है. दुनिया के कुछ हिस्सों में ये लड़कियों के साथ होता है. दाऊदी बोहरा समुदाय से आने वाली कई महिलाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लड़कियों के खतना को गैरकानूनी करार देने के लिए मदद की गुहार लगाई है.
भारत में भी ये काम होता है. यहाँ पर इसे लेकर कोई कानून नहीं बना है, इसलिए बोहरा समुदाय अब भी इस परंपरा का पालन करता है. जिसे यहां खतना या महिला सुन्नत कहते हैं. इसे अंग्रेजी में फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (एफजीएम) कहा जाता है. महिलाओं ने इसके खिलाफ एक कैंपेन भी लॉन्च किया है. दुनियाभर में लगभग २० करोड़ से ज्यादा महिलाओं का खतना हो चुका है. चाहकर भी कुछ महिलाएं इसे रोक नहीं पातीं. वो अपनी बेटियों को इससे बचा नहीं पातीं.
इसका सबसे ज्यादा शिकार अफ़्रीकी देशों की लड़कियां होती हैं. उन्हें ये भुगतना ही पड़ता है. अफ्रीका में हर साल तीस लाख लड़कियों पर इसका खतरा मंडरा रहा है समझा जाता है कि तीस अफ्रीकी देशों, यमन, इराकी कुर्दिस्तान और इंडोनेशिया में महिला खतना ज्यादा चलन में है. वैसे भारत समेत कुछ अन्य एशियाई देशों में भी इसके मामले मिले हैं. औद्योगिक देशों में बसी प्रवासी आबादी के बीच भी महिला खतना के मामले देखे गए हैं. इसका मतलब ये हुआ कि बाहर से मज़बूत और आधुनिक दिखने वाले देश भी इस परंपरा का पालन करते हैं. कई देशों में इसे उजागर नहीं किया जाता, लेकिन अंदरूनी तौर पर इसे किया जाता है.
दुनियाभर में ये अफ़्रीकी देशों में ज्यादा पाया गया है. इसमें सोमालिया, जिबूती और गिनी शामिल हैं. ये तीनों ही देश अफ्रीकी महाद्वीप में हैं. यहाँ पर लड़कियों का खतना बड़े पैमान एपर होता है. जिस समुदाय में ये किया जाता है, वो इसे सही मानते हैं और कहते हैं कि इसे ख़त्म नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे उनकी परंपरा पर आंच आएगी. उनकी आने वाली पीढ़ी अपनी वास्तविकता भूल जाएगी.