कानून की धाराओं से आजादी – कानून इंसान की सुरक्षा और हिफाजत के लिए होने चाहिए ना कि मनुष्य के मौलिक अधिकारों के हनन के लिए.
लेकिन आज भारत देश में कई कानून ऐसे हैं जिनका होना ही इन्सान के मौलिक अधिकारों को खत्म करता है. लोग कुछ कानून की धाराओं से आजादी चाहते है-
आइये एक नजर डालते हैं ऐसे 5 भारतीय कानून की धाराओं पर जिन्हें अब शायद बदलने की जरूरत है- कानून की धाराओं से आजादी चाहते है –
कानून की धाराओं से आजादी –
1. आत्महत्या करने वाले को सजा नहीं सलाह चाहिए
भारतीय दंड संहिता की धारा 309, जिसमें अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या की कोशिश करता है तो उसको सजा दी जाती है. लेकिन अब ऐसा लगता है कि इस तरह के लोगों को सजा नहीं बल्कि सलाह की जरूरत ज्यादा होती है. इसलिए कानून को सजा से बदलकर सलाह में तब्दील कर देना चाहिए.
2. कश्मीर से धारा 370 खत्म हो
धारा 370 का प्रयोग एक सही दिशा में नहीं हुआ है. इस धारा के कारण ही आज कश्मीर में आतंकवाद इतना बढ़ चुका है. इसी धारा के कारण कश्मीर में पाकिस्तानी झंडे लहराते हैं और वहां एक धर्म के लोगों के लोगों पर अत्याचार हो रहा है.
3. सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा)
सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) 1958 में संसद द्वारा पारित किया गया था और तब से यह कानून के रूप में काम कर रही है. आरंभ में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा में भी यह कानून लागू किये गये थे, लेकिन मणिपुर सरकार ने केंद्र सरकार के विरुध चलते हुए 2004 में राज्य के कई हिस्सों से इस कानून को हटा दिया. अभी इरोम शर्मीला सालों से इस कानून को मणिपुर से हटाने के लिए भूख हड़ताल पर हैं. इसलिए कम से कम उनके लिए मणिपुर से यह एक्ट हटा देना चाहिए.
4. फांसी अब कुछ ही मामलों में हो
देश में इस तरह की आवाजें पिछले कई समय से उठ रही हैं कि किसी व्यक्ति को कानून फांसी की सजा नहीं दे सकता है. जीना हर व्यक्ति का अधिकार है जो उसको प्रकृति ने दिया है. इसलिए अब कोई व्यक्ति एक हद तक समाज के लिए खतरा नहीं बनता है तब तक उसको फांसी ना दी जाये.
5. इच्छा मृत्यु का कानून
अभी हाल ही में इस तरह की बहस भी चालू हो गयी है कि इच्छा मृत्यु का कानून देश में होना चाहिए. अभी तो कानून है वह इच्छा मृत्यु की इजाज़त नहीं देता है. लेकिन कुछ मामले ऐसे होते हैं जहाँ पर इच्छा मृत्यु जरुरी हो जाती है.
इन कानून की धाराओं से आजादी – तो अब अगर पर पश्चिम की राह पर आगे बढ़ रहे हैं तो हमें उन्हीं की तरह सोचना भी होगा. पश्चिम में कई देशों के अन्दर यह कानून नही मानव हित में हैं इसलिए बहरत के अन्दर भी इनको मानव हित में होना चाहिए.
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