जैसे ही हम बात करते है गौतम बुद्ध की हमारे आंखो के सामने उनकी समाधी अवस्था की प्रतिमा आ जाती है. शांति और सुकून का अहसास होने लगता है. हम सब जानते है कि गौतम बुद्ध एक राजा थे, जिन्होंने बचपन में दूसरों का कष्ट देखा और अपनी गृहस्थी छोड़ उन दुखो के निवारण के लिए राजपाठ त्याग दिया.
७ दिन ८ रातो की कठिन उपासना के बाद उनको ज्ञान प्राप्ति हुई. इस ज्ञान को बुद्ध ने अपने तक सीमित नहीं रखा. जो राह में मिला उसे वो ये ज्ञान देते गए. जो उनको फिर हिंदु धर्म में बुलाने आये वो भी खुद बुद्ध के रंग में रंग गए. इस तरह बुद्ध के विचारों का प्रचार प्रसार होने पर लोगों ने इसे बौद्ध धर्म नाम दिया.
बुद्ध से कौन हुए थे प्रेरित ?
वैसे तो कई लोगों ने बुद्ध धर्म को अपनाया, जिनकी हम बात करेंगे वो ऐसे महान योद्धाओं की कहानी है जिन्होंने राजा होने का कभी गर्व नहीं किया और अपनी जनता के लिए, सभी कष्टों को दूर करने के लिए बुद्ध के विचार अपनाए.
सम्राट अशोक –
अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य के बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता है. हमारे तिरंगे पर नीला अशोक चक्कर इसका ज्ञान हमेशा कराता है कि राजा अशोक कितना महान था. जीवन के उत्तरार्ध में अशोक गौतम बुद्ध के भक्त हो गए और उन्हीं स्मृति में उन्होंने एक स्तम्भ खड़ा कर दिया जो आज भी नेपाल में उनके जन्म स्थल-लुम्बिनी में मायादेवी मन्दिर के पास अशोक स्तम्भ के रूप में देखा जा सकता है. उसने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया। अशोक के अभिलेखों में प्रजा के प्रति कल्याणकारी द्रष्टिकोण की अभिव्यक्ति की गई है.
सम्राट कुषाण –
कुषाण सम्राट कनिष्ट की गणना भारत ही नहीं एशिया के महानतम शासकों में की जाती है. इसका साम्राज्य मध्य एशिया के आधुनिक उझबेकिस्तान, तजाकिस्तान, चीन के आधुनिक सिक्यांग एवं कांसू प्रान्त से लेकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और समस्त उत्तर भारत में बिहार एवं उड़ीसा तक फैला था. कुषाण अपनी प्रजा को संतुष्ट करने के लिए सब धर्मों के देवताओं को अपने सिक्कों पर अंकित कराया था. पर इस बात में कोई सन्देह नहीं कि कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी था, और बौद्ध इतिहास में उसका नाम अशोक के समान ही महत्व रखता है. आचार्य अश्वघोष ने उसे बौद्ध धर्म में दीक्षित किया था. इस आचार्य को वह पाटलिपुत्र से अपने साथ लाया था और इसी से उसने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी.
बौद्ध धर्म क्या है ?
दरसल यह धर्म नहीं है, ये एक जीने का तरीका है जिसे महात्मा बुद्ध ने अपने आसान शब्दों में लोगों तक पहुचाया है.
- नैतिक जीवन जिनका तरीका है बौद्ध.
- विचारों को कार्यों में बदलते वक़्त उसे जागरूक तरीके से करना सिखाता है बौद्ध.
- ज्ञान और समझदरी को विकसित करता है बौद्ध.
क्या बुद्ध भगवान है ?
राजा सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुई किंतु उन्होंने कभी नहीं कहा कि वो भगवान है. उन्होंने यह भी नहीं कभी कहा की वो ही बौद्ध के प्रचारक और प्रसारक है. उन्होंने केवल लोगों के दुःख दूर करने के लिए अपने ज्ञान का प्रसार किया था.
बौद्ध धर्म फैलने में सफल क्यों हुआ?
यह एक मात्र धर्म है जो असल में जीने का तरीका सिखाता है. इस में दुखों से बचने के कई उपाय है जिससे लोग अपनाते गए और उसका प्रसार अधिक हुआ. बौद्ध धर्म में यह नहीं कहा गया की आप अंधे बनके किसी विचार को अपनाओं बल्की यह बताया जाता है कि आपकी अंदर की आत्म को पहचानो वाही परमेश्वर है और दुखो का निवारणकरता. इस लिए बुद्ध भक्त अक्सर अपना सर थोडा झुकाके अपने इष्ट को याद करते है और अपने अंतर आत्मा में झाकते है.
बौद्ध धर्म वैज्ञानिक है?
आप विभिन्न देशो के बौद्ध लोग देखेंगे तो आप को पता चलेगा कि वे एक दुसरे से विचारों में अलग है. यह इस लिए क्योंकि सभी देशों की अपनी एक छाप होती है. किंतु जो गौतम बुद्ध के सही विचारों का अनुयायी है वो ही इंसान असली बौद्ध है. ऐसे लोग आपको अपने अनुभवों से बताएंगे कि बौद्ध धर्म में कोई आपको नहीं खिचता. ये विचार ही इतने प्रैक्टिकल है की आप इनमे हो लेते हो और बौद्ध धर्म को मानने लगते हो.
बुद्ध के कुछ अनमोल विचार
१. सत्य एक ही है, दूसरा नहीं। सत्य के लिए बुद्धिमान विवाद नहीं करते.
२. मनुष्य को असत्य भाषण का परित्याग कर देना चाहिए और दूसरों को भी सत्य बोलने का उपदेश करना चाहिए. सदा ईमानदारी की सराहना करनी चाहिए.
३. सभी गलत कार्य मन से ही उपजाते हैं. अगर मन परिवर्तित हो जाय तो क्या गलत कार्य रह सकता है.
४. अतीत पर ध्यान केन्द्रित मत करो, भविष्य का सपना भी मत देखो, वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करो.
५. घृणा, घृणा करने से कम नहीं होती, बल्कि प्रेम से घटती है, यही शाश्वत नियम है.
६. स्वास्थ्य सबसे महान उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन तथा विश्वसनीयता सबसे अच्छा संबंध है.
७. मनुष्य का दिमाग ही सब कुछ है, जो वह सोचता है वही वह बनता है.
८. अपने उद्धार के लिए स्वयं कार्य करें. दूसरों पर निर्भर नहीं रहें .
महात्मा बुद्ध अस्सी वर्ष के थे जब उन्होंने अंतिम शब्द अपने मुख से बोले –
“हे भिक्षुओं, इस समय आज तुमसे इतना ही कहता हूँ कि जितने भी संस्कार हैं, सब नाश होने वाले हैं, प्रमाण रहित हो कर अपना कल्याण करो.
अब आप समझ गए होंगे की क्यों वो महान योद्धा अपने राजपाठ को छोड़ छाड़ के बुद्ध के नक़्शे कदम पे चल पड़े थे.