गो रक्षा आंदोलन है एक ऐसा मुद्दा है जिससे भारत की प्रत्येक सरकार को डर लगता है. सरकार चाहे वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हो या फिर अग्रेंजो की.
जब जब ये मुद्दा आंदोलन का स्वरूप लेता है सरकारों के माथे पर चिंता की लकीरे बड़ी होने लगती है. गो रक्षा को लेकर जो ओदालन चल रहा है ये आंदोलन कोई आज का आंदोलन नहीं है.
बहुत कम लोगों को इस बात की जब अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे उस वर्ष 1870 से 1893 तक देश गो रक्षा को लेकर एक बहुत बड़ा उग्र आंदोलन हुआ था. इस आंदोलन से घबराकर ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने वायसराय लार्ड लैंसडाउन को पत्र लिखकर आगाह किया था कि हमें भारत में सतर्क रहना होगा गो रक्षा को लेकर ये 1857 के विद्रोह के बाद सबसे बड़ा विद्रोह है.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में मुस्लिमों से कहीं अधिक गो हत्याएं अंग्रेज लोग करते थे. वे गाय का मांस खाते थे लेकिन इसके लिए गो हत्या का कार्य वे स्वयं न करके मुस्लिमों से कराते थे.
ब्रिटिश खुफिया विभाग के दस्तावेज इस बात के गवाह है कि पंजाब, बिहार और उत्तर प्रदेश में ये आंदोलन बहुत तेजी से फैला था. काबिले गौर है कि 57 के विद्रोह की वजह भी कारतूसों में गाय की चर्बी लगा होना था. यही वजह है कि जब अंग्रेजों को भनक लगी तो उन्होंने इसकी जांच करवाई तो वे सच्चाई जानकर चैंक गए.
भारत में अंग्रेजो द्वारा स्थापित लुधियाने के कत्लखाने में ले जाई जा रही गाय को सिख रेजीमेंट के कुछ सैनिकों ने रोक दिया. अंग्रेज डर गए कि जिस प्रकार उत्तर भारत में जिन स्ािानों पर 57 का विद्रोह भड़का था कहीं उसी प्रकार गाय को लेकर दोबारा कोई बड़ा विद्रोह न हो जाए.
अंग्रेजो के डर का एक कारण मुस्लमान भी थे. क्योंकि लाहौर से निकलने वाले उर्दू के अखबार जिस प्रकार मुस्लिमों को धार्मिक ग्रथों का हवाला देकर बता रहे थे कि गो हत्या को इस्लाम में कुफ्र के समान बताया है उससे कहीं मुस्लिम भी गायस को लेकर हिंदुओं के साथ मिल गए तो उनके लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है.
लिहाजा, गो रक्षा आंदोलन एक बार फिर जोर पकड़ रहा है. आंदोलन के जोर पकड़ने से इस वक्त नरेंद्र मोदी सरकार चिंता में हैं. उसकी चिंता है कि अगर ये आंदोलन तेज हुआ और सरकार यह आंदोलन विरोध में गया तो भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है.
देश में इस समय गो रक्षा को लेकर आंदोलन की तैयारी हो रही है और गाय को लेकर जिस प्रकार हिंदुओं की आस्था गाय से जुड़ी है उसका यदि समय रहते समाधान नहीं किया गया तो सरकार के लिए गो रक्षा आंदोलन आने वाले दिनों में सबसे बड़ी चुनौती बन सकता हैं.
अगले साल उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में चुनाव होने हैं और भाजपा सरकार यहां हिंदू मतों पर ही दांव लगा रही है.
अगर गाय को लेकर केंद्र सरकार ने यदि पूर्ववर्ती सरकारों की तरह रवैया दिखाया तो स्थिति पलट भी सकती है.
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