गणेशजी की मूर्ति – कभी भी घर के दरवाजे पर बिना सोचे-समझे गणेशजी की मूर्ति नहीं लगाना चाहिए।
जी हां घर में एक ही जगह पर बप्पा की दो मूर्ति भी नहीं रखना चाहिए, अशुभ होता है।वास्तुशास्त्र की माने तो इससे उर्जा का आपस में टकराव होता है जो अशुभ फल देता है। अगर एक से अधिक गणेश जी की मूर्ति है तो दोनों को अलग-अलग स्थानों पर रखना ही उचित होगा। बिना जाने कोई मूर्ति कहीं भी ना रखें।
साथ ही गणेशजी की मूर्ति या फोटो को कभी ऐसे न रखें जिसमें वह घर के बाहर देख रहे हों। गणेशजी का मुख हमेशा उस दिशा में होना चाहिए जिससे वह घर की ओर देखते नजर आएं। अगर मूर्ति बाहर की ओर देखते हुए लगाएं तो ठीक इनके पीछे एक मूर्ति लगा दें ताकि गणेश जी का पीठ अंदर की तरफ नहीं दिखे। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि गणेश जी के पीठ वाले भाग में दुख और दरिद्रता का वास माना जाता है।
गणपति जी को पुराणों में विघ्नकर्ता और हर्ता दोनों कहा गया है। ऐसे में गणेशजी की मूर्ति घर में है तो आपको कुछ बातों का हमेशा ध्यान रखना चाहिए ताकि आपके लिए ये विघ्नकर्ता ना बनें और शुभ फलों की प्राप्ति हमेशा होती रहे।
वास्तु विज्ञान के अनुसार अगर घर में रखी गणेश जी की मूर्ति खंडित या गिर कर टूट जाए या मूर्ति बेरंग होने लगे तो उसे नदी या तालाब में प्रवाहित कर दें और उसकी जगह नई मूर्ति को स्थापित करें। खंडित और बेरंग मूर्ति से सकारात्मक उर्जा का संचार नहीं होता है और आपको लाभ नहीं मिलेगा।
मंगलकारी गणेश जी-
घर में गणेश जी की बांयीं ओर सूंड वाली मूर्ति रखना अधिक मंगलकारी माना गया है क्योंकि इनकी पूजा से जल्दी फल की प्राप्ति होती है। दायीं ओर सूंड वाले गणपति देर से प्रसन्न होते हैं।गणेश जी को विराजमान करने के लिए ब्रह्म स्थान, पूर्व दिशा और उत्तर पूर्व कोण शुभ माना गया है लेकिन भूलकर भी इन्हें दक्षिण और दक्षिण पश्चिम कोण यानी नैऋत्य में नहीं रखें इससे हानि होती है।
वास्तु शास्त्र भारतीय शास्त्रों में से एक शास्त्र है, जिसकी जड़ें प्राचीन काल से ही भारत में मौजूद है। वास्तु में दिशाओँ का बड़ा महत्तव होता है। कुछ लोग घर निर्माण के समय इसका ध्यान रखतें है।लेकिन कहीं ना कहीं हर किसी से गलती हो ही जाती है।जिसके कारण नुकसान होता है।
ये चिन्ह है शुभ-
-प्रवेश द्वार के आगे स्वास्तिक, ओम, शुभ लाभ जैसे मांगलिक चिन्हों का उपयोग करें।
-प्रवेश द्वार पर कभी भी बिना सोचे समझे गणेशजी की मूर्ति ना लगाएं।
-विवाह पत्रिका कभी भूलकर भा ना फाड़े क्योंकि इससे व्यक्ति को गुरु और मंगल का दोष लग जाता है।
-विघ्नकर्ता गणपति जी की मूर्ति स्थापित करते समय हमें दिन, दिशा, स्थान आदि बातों का ख्याल रखना चाहिए।
गणेशजी की मूर्ति कहां स्थापित करें?
-गणपति आदि देवताओं का मंदिर घर के ईशान-कोण में होना चाहिए और उनकी स्थापना इस प्रकार करनी चाहिए कि उनका मुख पश्चिम की तरफ हो।
-यदि साधक के इष्ट देवता गणपति जी है तो उनकी स्थापना मध्य में करके ईशान कोण में बिष्णु की, अग्निकोण में शंकर जी की स्थापना करना चाहिए।
-मंदिर में मात्र एक देवता की मूर्ति रखना निषेध है। व्यक्ति यदि अपनी कामनाओं की सफलता चाहता है तो उसे मंदिर में कई देवताओं को रखना चाहिए। लेकिन एक ही भगवान की कई मूर्तियां नहीं होना चाहिए।
गणेशजी की मूर्ति कब स्थापित करें?
अकसर लोग बिना सोचे समझे कभी भी जब मन में आए अपनी इच्छानुसार अपने इष्ट की मूर्ति घर ले आते है और मंदिर में स्थापित कर देते है। ऐसा करना गलत है। मूर्ति रखना है तो उस दिन रखें जिस दिन मंगलवार ना हों और तिथियों में चतुर्थी,नवमी और चतुर्दशी ना हो, उसके लिए चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, माघ मास शुक्ल पक्ष को ही चुने।
गणेशजी की मूर्ति कैसे स्थापित करें?
-गणेशजी के सूंड को लेकर भी कई लोगों में भ्रम है कि उनकी सूंड किस दिशा में होनी चाहिए। अमूमन हमारा बायां हाथ ही ऊर्जा को ग्रगण करके उसे हमारे शरीर में विपरीत करता है। इसी कारण मुख्य द्वार पर ऐसी गणेश मूर्ति लगाए जिनकी सूंड उनके बाएं तरफ हो।
-गणेश जी पर पीले रंग का फूल चढ़ाने का भी रिवाज है। जिसका एकमात्र कारण है कि घर के मध्य भाग का पृथ्वी त्तव का होना।
-घर के बाहर जब गणेश की मूर्ति लगाएं तो उनकी सूंड वामवर्त में होना चाहिए, जबकि घर के अंदर दक्षिणावर्ता, गणेश की वामवर्त सूंड घर के अंदर नकारात्कता ऊर्जा का प्रवेश नहीं होने देती। औऱ दक्षिणावर्ता सकारात्मकता को कई गुना बढ़ा देती है।
गणेशजी की मूर्ति – ध्यान रहें की कभी भी घर के शयन कक्ष में देवी देवताओं की मूर्ति या तस्वीर नहीं लगाना चाहिए इससे नेगेटिविटी आती है और अशुभ भी माना जाता है।
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