गांधी आरएसएस से असहमत – मोहनदास करमचंद गाधी भारतीय राष्ट्रपिता…
एक पिता कभी नहीं चाहता कि उसके घर में लड़ाई झगंड़े मन-मुटाव हो, बस महात्मा गांधी का भी यही विचार था। उनका सपना हिन्दुस्तान की आज़ादी का था, ना कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाईयों की आपसी आज़ादी का। महात्मा गांधी अहिंसा प्रेमी थे, इसलिए उन्हें राजनीति के शब्दों में नर्म दल का नेता कहा जाता था। वह हिन्दुस्तान को अंग्रेजों की सोच और उनके राज शासन दोनों से आज़ाद कराना चाहते थे, इसलिए कई बार जब कोई उनके इस विचार से विपरित होता तो वह उसका भी पुरजोर विरोध जताते थे।
गांधी आरएसएस से असहमत –
आखिर क्यों थे गांधी आरएसएस से असहमत
गाधी को लेकर लिखी गई किताब ‘हरिजन’ में इस बात का खुलासा किया गया है, कि आखिर क्यों थे वह आरएसएस के विचारों और उनके ढ़ंग से असहमत। किताब में साल 1942 के पन्नों पर जोर डालते हुए यह साफ किया गया है कि उस दौरान कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे ‘आसिफ अली’ ने पहले 9 अगस्त 1942 को गांधी जी को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा- “राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ अपने 3000 सदस्यों के साथ मिलकर रोजाना लाठी के साथ कवायद करता है, और इसके बाद वह नारा लगाते हैं कि हिंदुस्तान हिंदुओं का है और किसी का नहीं। इतना ही नहीं वह इसके बाद वह अपने भाषण में कहते है कि पहले अंग्रेजों को निकाल बाहर करो, उसके बाद हम मुस्लमानों को अपने अधीन कर लेंगे और अगर वो हमारी नहीं सुनेंगे तो हम उन्हें मार डालेंगे।”
असिफ अली के इस पत्र पर महात्मा गांधी ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा है कि “बात जिस ढंग से कही गई है, उसे उसी तरह से समझ कर कहा जा सकता है कि यह नारा गलत है और भाषण की मुख्य विषय वस्तु तो और भी बुरी है। आरएसएस का यह नारा गलत और बेमानी है, क्योकि हिन्दुस्तान उन सब लोगों का है जो यहां पैदा हुए और पले बढ़े हैं। वे दूसरे मुल्कों का आसरा नहीं ताक सकते।” इतना ही नहीं महात्मा गांधी ने यह भी कहा कि “हिन्दुस्तान जितना हिन्दुओं का है उतना ही पारसियों, यहूदियों, हिन्दुस्तानी ईसाइयों, मुसलमानों और दूसरे गैर-हिन्दुओं का भी है। इसलिए आज़ाद हिंदुस्तान में राज केवल हिन्दुओं का नहीं बल्कि हिंदुस्तानियों का होगा, और वह किसी धार्मिक पंथ या संप्रदाय के बहुमत पर नहीं, बिना किसी धार्मिक भेदभाव के निर्वाचित पूरे जन समाज के प्रतिविधित्व पर आधारित होगा”
धर्मपरायण हिन्दू थे गांधी
ये बात सभी जानते है कि महात्मा गांधी धर्मपरायण हिन्दू थे। उनका मानना था कि “धर्म एक निजी विषय है, जिसका राजनीति में कोई स्थान नहीं होना चाहिये। विदेशी हुकुमत की वजह से देश में जो अस्वाभाविक माहौल पैदा हुआ, उसका कारण भी धर्म विभाजन था… और वजह भी। इसी धर्म के विभाजन ने लोगों की देशभक्ति और आपसी प्रेम में विभाजन किया है”
गांधी आरएसएस से असहमत – गांधी ने आरएसएस और हिन्दुत्व दोनों ही विचारों को सिरे से नकारतें हुए लिखा था कि “संख्या और संगठन बल के आधार पर कोई भी धर्म आज़ाद हिंदुस्तान का भाग्यविधाता नहीं होगा बल्कि जनता के चुने प्रतिनिधी ही भारत का विधान बनायेंगे और चलाएंगे, यह अवधारणा भारत के आज़ाद होने, संविधान सभा बनने और सविधान बनाने से काफी पहले ही उन्होंने कलमबंद कर दी थी।”
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