आज विज्ञान के दौर में हम आपसे हवा में यह बोलेंगे कि श्राप और बददुआ जैसी चीजें होती हैं तो शायद आप यकीन ना करें.
लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं कि कैसे एक श्राप ने इंदिरा गांधी का खात्मा जरुर कर दिया है-
गोहत्या को ब्रह्मा की हत्या बताया गया है-
आप शास्त्रों को पढ़ लीजिये या फिर किसी विद्वान व्यक्ति से पूछ लीजिये कि गोहत्या के बारें में शास्त्र क्या कहते हैं? गोहत्या को ब्रह्मा की हत्या बताया गया है. शुरुआत से ही गो हिन्दूओं के लिए पूजनीय रही है और भगवान रही है. गाय में सभी हिन्दू देवताओं का रूप है. अब बेशक पढ़े लिखे लोग इसको मजाक समझे लेकिन सनातन धर्म तो यही कहता है.
गोपाष्टमी के दिन सन 1966 को मिला था इंदिरा गांधी को श्राप –
कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गौ चारण की लीला शुरू की थी. साल 1966 में जब इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री थीं तो उस समय लाखों संत संसद के सामने इकठ्ठा हुए थे ताकि गोरक्षा के कोई कानून सरकार बना सकें. लेकिन इंदिरा गांधी ने तब संतों पर जिस तरह से गोलियां चलवाई थीं तो संतों ने उसी समय इंदिरा गांधी को श्राप दिया था.
अब आप इस बात को मजाक में ले रहे होंगे और हंस रहे होंगे. इस गोली काण्ड में 66 साधू संत मारे गये थे.
तो अब इंदिरा गांधी की हत्या के दिन –
तो अब आप जरा हिन्दू कलेंडर उठाकर देख लीजिये कि जिस दिन इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी तो उस दिन गोपाष्टमी का ही दिन था. आपको पता होगा कि इंदिरा गांधी की मृत्यु 31 अक्टूबर 1984 में हुई थी. इस दिन देश में एक तरफ हिन्दू लोग महोत्सव मना रहे थे तो दूसरी और देश एक दुखद पल का अनुभव लेने वाला था. 31 अक्तूबर को गोपाष्टमी के ही दिन देश की प्रधानमंत्री को उन्हीं के रक्षकों ने गोलियों से भून दिया था. इस दिन गोपाष्टमी के साथ-साथ मासिक दुर्गाष्टमी थी.
कहते हैं कि संतों का इंदिरा गांधी को संतों का श्राप था कि इनकी मृत्यु भी इन्हीं ग्रहों में होगी और यह शायद एक संयोग ही था कि जिस दिन इंदिरा जी की हत्या हुई, उस दिन गोपाष्टमी थी.
तो अब तो आपको पता लग गया है कि हाँ इंदिरा गांधी की हत्या और संतों के श्राप में जरुर कोई कनेक्शन था.
वैसे एक सवाल इंदिरा जी से हर कोई पूछता था कि सन 1966 में जिस तरह से गाय की रक्षा के लिए संत शान्तिपूर्वक आन्दोलन कर रहे थे क्या उन पर गोलियां चलवाना वाकई जरुरी था?
हो ना हो लेकिन गो हत्या का श्राप इंदिरा गाँधी के लिए सच में भारी पड़ा था.