सांप और चूहे के बीच दुश्मनी तो जग जाहिर है.
सदियों से चली आ रही इस दुश्मनी के बारे में कहा जाता है कि इन दोनों में कभी दोस्ती नहीं हो सकती. लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं एक भव्य और ऐतिहासिक मंदिर के बारे में, जहां यह चमत्कार देखने को मिलता.
सिंहासन बत्तीसी की कहानी में राजा गंधर्वसेन की नगरी गंधर्वपुरी का ज़िक्र मिलता है. मध्यप्रदेश के देवास ज़िले की इसी नगरी में मौजूद है गंधर्वसेन मंदिर, जहां यह चमत्कार हर रोज़ होता है.
नागराज का चूहापाली स्थान
गंधर्वपुरी के इस गंधर्वसेन मंदिर के गुंबद के नीचे एक ऐसा स्थान है, जिसके बीचोबीच विराजते हैं पीले रंग के इच्छाधारी नाग, जिनके चारों ओर दर्जनों चूहे परिक्रमा करते हैं. इस गांव के लोग इसे नागराज का ‘चूहापाली’ स्थान कहते हैं जो हज़ारों साल पुराना है.
गांव वालों की मान्यता
गांववालों की मानें तो उन्होने नाग और चूहों को अपनी आंखों से तो नहीं देखा, लेकिन हर रोज़ परिक्रमा करने के स्थान पर चूहों की सैकड़ों लेंडिया और उसके ठीक बीच में नाग की लेंडी पाई जाती है.
लोगों का कहना है कि उस जगह को कई बार साफ किया जाता है लेकिन पता नहीं कहां से नागराज और चूहों की लेडिंया वहां फिर से आ जाती है.
चमत्कार या अंधविश्वास
गांव के कुछ बड़े बुज़ुर्गों का मानना है कि चूहापाली में पीले रंग का इच्छाधारी नाग रहता है, जो हज़ारों साल पुराना है, जिसके दर्शन सिर्फ किस्मतवालों को ही नसीब होते हैं.
मंदिर के आस-पास रहनेवाले लोग बताते हैं कि अक्सर ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर से घंटियों की आवाज़ आती है. खासकर अमावस्या और पूर्णिमा के दिन जब मंदिर का ताला खोला जाता है तब मंदिर एकदम साफ सुथरा मिलता है, जिसे देखकर ऐसा लगता है जैसे मंदिर खुलने से पहले किसी ने पूजा की हो.
मंदिर में मौजूद है गंधर्वसेन की मूर्ति
इस प्राचीन मंदिर में राजा गंधर्वसेन की मूर्ति स्थापित है. वैसे तो राजा गंधर्वसेन के बारे में कई किस्से-कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन इस गंधर्वसेन मंदिर से जुड़ी उनकी कहानी अजीब ही है.
ग्रामीणों का मानना है कि यहां पर राजा गंधर्वसेन मंदिर सात-आठ खंडों में था, जिसके बीचोबीच राजा की मूर्ति स्थापित थी, लेकिन अब सिर्फ राजा की मूर्ति वाला मंदिर ही बचा है.
मूर्ति का दुख हर लेते हैं नागराज
यहां के लोग बताते हैं कि चूहापाली में चूहों के बीच विराजनेवाले नागराज वर्षों से इस गांव के लोगों की रक्षा करते आ रहे हैं. नागराज की शरण में आनेवाले भक्तों का हर दुख मिट जाता है और उन्हें शांति का अनुभव होता है. नागराज के प्रति लोगों की आस्था उन्हें यहां खींच लाती है.
बहरहाल हजारों साल पुराने इस मंदिर की नींव, स्तंभ और दीवारें बौद्धकाल की बताई जाती है. लेकिन यह भी सच है कि यहां पर साक्षात रुप में इच्छाधारी नाग और उनकी परिक्रमा करनेवाले चूहों को किसी ने नहीं देखा है.
अब ये आपको तय करा है कि यहां सच में ऐसा चमत्कार होता है या फिर ये महज लोगों का अंधविश्वास है.