गणपति बप्पा मोरिया – हिंदू धर्म में किसी भी कार्य की शुरुआत से पहले देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा की जाती है. ताकि वह हमारे सभी कामों को बिना किसी रुकावट के पूरा करने में मदद करें.
वहीं भारत में भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी महोत्सव मनाने की परंपरा है. इस बार गणेशोत्सव की शुरुआत 13 सितंबर 2018 से हुई है. यह 11 दिन तक चलने वाल महोत्सव काफी धूमधाम से मचाया जाता है. इन 11 दिनों में चारों तरफ पंडाल सजे रहते हैं उसमें गणपति बप्पा विराजमान रहते हैं. सुबह-शाम धूप-नवैद्य से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है. और चारों तरफ ‘गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया’ के जयकारे से आसमान गूंज उठता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणपति बप्पा मोरया बोलने के पीछे की वजह क्या है? शायद नहीं. तो चलिए आज हम आपको 600 साल पुरानी एक कहानी सुनाते हैं जिसका संबंध इस जयकारे से जुड़ा हुआ है.
600 साल पुरानी है कहानी गणपति बप्पा मोरिया की
14वीं शताबदी में पुणे से 18 किमी दूर चिंचवाड़ में मोरया गोसावी नाम के एक बालक का जन्म हुआ था. मोरया गोसावी का जन्म भगवान गणेश के आशीर्वाद से ही हुआ था. क्योंकि उनके पिता वामनभट और मां पार्वतीबाई की भक्ति से खुश होकर भगवान ने कहा था कि वो उनके यहां पुत्र के रूप में जन्म लेंगे. इसलिये उनके माता-पिता और मोरया श्रीगणेश के बहुत बड़े भक्त थे.
गणपति के सबसे बड़े भक्त मोरया गोसावी
कहते हैं कि मोरया गोसावी हर गणेश चतुर्थी को चिंचवाड़ से पैदल चलकर 95 किमी दूर मयूरेश्वर मंदिर में भगवान गणेश के दर्शन करने जाते थे. ये सिलसिला उनके बचपन से लेकर 117 साल की उम्र तक चलता रहा. जब मोरया काफी बूढ़े हो गए तो वह चलने में असमर्थ भी हो गए उनके सामने 95 किमी पैदल चलकर मयूरेश्वर मंदिर जाना काफी मुश्किल काम हो गया. इस परेशानी को देखते हुए भगवान गणेश ने एक दिन सपने में मोरया गोसावी को दर्शन दिए. और कहा कि जब तुम स्नान करने जाओगे तो नदी में एक मेरी मूर्ति को पाओगे. गोसावी ने जैसा सपना देखा वह सच भी हुआ.
117 साल की आयु में 95 किमी पैदल चल जाते थे
साल 1492 की बात है मोरया गोसावी जब नदी में नहा रहे थे तो उन्हे मयूरेश्वर गणपति की एक छोटी से मूर्ति हाथ लगी. मोरया उसे लेकर चिंचवाड़ आ गए और यहां पर उसे स्थापित कर दिया. धीर-धीरे चिंचवाड़ मंदिर की लोकप्रियता बढ़ती गई. महाराष्ट्र से लेकर देशभर के कई जगहों से लोग चिंचवाड़ा मंदिर भगवान गणेश के दर्शन के लिये आने लगे. वहीं मोरया गोसावी पूजा-पाठ करते थे.
भक्तगण गजानन के दर्शने के बाद उनके सबसे बड़े भक्त मोरया से आशीर्वाद लेने आते थे. जब गोसावी जी के पैर छूकर भक्तगण मोरया कहते थे और संत मोरया अपने भक्तों से मंगलमूर्ति कहते थे और इस प्रकार गणेश उत्सव के दौरान गणपति बप्पा मोरिया, मंगलमूर्ति मोरया के जयकारे लगने की परंपरा शुरू हो गई.
पुणे में स्थित है मोरया गोसावी मंदिर
आज पुणे शहर से 15 किमी दूर बसा चिंचवाड़ गांव में स्थित मोरया गोसावी मंदिर काफी पॉपुलर है. यहां श्रद्धालु भगवान गजानन के सबसे बड़े भक्त संत मोरया गोसावी के दर्शन करने आते हैं. वहीं चिंचवाड़ के लोग जब एक-दूसरे मिलते हैं तो राम-राम नहीं बल्कि ‘मोरया’ कहते हैं.
मोरया गोसावी मंदिर में साल में 2 बार विशेष उत्सव का आयोजन किया जाता है. भाद्रपद मास में और माघ मास में, इस मंदिर से भगवान गणपति की पालकी निकाल जाती है, जो मोरगांव के गणपति के दर्शन के लिये ले जाई जाती है. दिसंबर के महीने में यहां बहुत बड़ा मेला लगता है जहां पर दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं और संत मोरया की दर्शन मात्र से ही उनकी सारी मनोकामनाएं पू्र्ण हो जाती हैं.मोरया गोसावी मंदिर में संत मोरया के साथ-साथ उनके 8 वंशजों की समाधि में स्थित है.
इस तरह से हुआ गणपति बप्पा मोरिया का जन्म – हमें उम्मीद है कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा. हमें नीचे दिये गए कमेंट् बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें. धन्यवाद! ऐसी ही और रोचक ख़बरों के लिए हमारी वेबसाइट पर विजिट करते रहें.
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