निर्भया – 16 दिसंबर 2012 ये वो तारिख है, जिसने बलात्कार के कानूनों में तो बदलाव किया, लेकिन देश के हालातों में बदलाव करने में नाकाम साबित हुई।
साल 2012 में हुए इस बलात्कार कांड को किसी ने निर्भया का नाम दिया, तो किसी ने दामिनी का।
पूरे देशभर से लोग निर्भया के लिए इंसाफ मांगने के लिए सड़को पर उतर आये थे। निर्भया के साथ हुए बलात्कार कांड ने देशभर को मांसिक और शारीरिक तौर पर झंझौर के रख दिया था। लोग बलात्कार अपराधियों के कानूनों में बदलाव और इंसाफ की गुहार लगाने इंडिया गेट से जंतर-मंतर तक प्रदर्शन कर रहे थे।
लोगों के जहन में इस तरह से इंसाफ की मांग का जुनून देख केन्द्र सरकार के हाथ-पैर फूलने लगे। जिसके बाद निष्कर्ष यह निकला कि बलात्कार के कानूनों में कई बदलाव किये गए। कई बड़े प्रावधान भी बनाये गए।
इन बदलावों के तहत बलात्कार के विशेष मामलों में 16 से 18 साल के अपराधियों के खिलाफ वयस्क अपराधियों की तरह केस चलाने का फैसला लिया गया। जोकि निर्भया कांड से पहले 18 वर्ष से कम के बलात्कार अपराधियों के लिए मात्र 3 साल की सजा का प्रवधान था। लेकिन आज भी देश में लगातार बच्चियों, महिलाओं के साथ हो रहे बलात्कार से ये बात साफ होती जा रही है कि इन बलात्कार के वैशियों में कानून को लेकर कोई डर खोफ नहीं है।
लेकिन आज 6 साल बाद भी महिलाओं और बच्चियों पर हो रहे इस जंघ्नय अपराध में हालात जस के तस बने हुए है। आज भी बलात्कारियों में ना कोई खोफ है ना कोई डर। हालात ये है कि गुरूग्राम से लेकर कठुवा और उन्नाव तक हर रोज रेप के मामले दर्ज तो किये जाते है, लेकिन उनपर सुनवाई अपराधों की भीड़भाड़ में अटक जाती है। आज उन्नाव कांड और आसिफा के साथ हुई बर्बरता को देखकर यह बात तो साफ हो गई है, कि इन बलात्कार के मामलों में सरकारें बदल रही है पर हालात नहीं।
जहां एक ओर उन्नाव कांड में अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने की गुहार में एक पिता ने आत्महत्या तक कर ली है, वहीं दूसरी तरफ कठुआ में बेबस माता-पिता अपनी 8 साल की बच्ची के साथ हुए घिनौने बलात्कार और बेरहमी से की गई मौत पर इंसाफ की मांग कर रहे है। दोनों ही बड़े मामलों में कही ना कही राजनैतिक खेल जारी है। लेकिन इन राजनैतिक खेलों से उस 8 साल की मासूम बच्ची का क्या लेना-देना था, जिसका कर्ज उसे अपनी मौत के साथ चुकाना पड़ा।
मासूम आसिफा के साथ हुई बर्बरता के चलते आज सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक जनता का गुस्सा दिख रहा है। लोग अपने गुस्से के जरिये इंसाफ की मांग कर रहे है। बात अगर आसिफा के मामले की करे तो 8 साल की आसिफा के साथ भी बलात्कारियों ने बर्बरता की हर हद को तोड़ दी। मासूम बच्ची को भूखे-प्यासे कई दिनों तक नशे के इंजेक्शन देते रहे और अपनी हैवानित दिखाते रहे। इतने पर है दरिंदों की रूह नहीं कापी, इसके बाद बड़ी बेरहमी से उन्होंने आसिफा की गला दबाकर हत्या कर दी। इस मामले में सीबीआई ने जो 15 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की है उसका हर एक पन्ना रोंगटे खड़ा कर देने वाला और दिल दहला देने वाला है।
बात निर्भया, दामिनी और आसिफा की नहीं है, बात है बदलाव की…. बात है कानूनी डर की। जोकि लगातार बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं के चलते जरा भी देखने को नहीं मिल रहा। रेप की लगातार बढ़ रही इन घटनाओं से तो साफ जाहिर होता है, कि ये दरिंदे कानून को अपनी मुठ्ठी में लेकर चलते है। निर्भया कांड ने कानून तो बदल दिया, लेकिन निर्भया को इंसाफ नहीं दिला पायी। आरोपियों को कानून ने शिकंजे में तो ले लिया, लेकिन मामला कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के दरवाजें की तारिखों पर जा अटका।
आज निर्भया कांड के बाद भी कुछ नहीं बदला है… और अगर बदला है तो सिर्फ इतना कि अब रेप के मामले मेनस्ट्रीम मुद्दे की तरह ट्रीट किए जाते हैं। हर शख्स इंसाफ के लिए अपनी आवाज उठाता है अखबारों के पहले पन्ने रेप की खबरे छपती है और राजनैतिक पार्टियां कुछ समय तक उनपर अपनी रोटियां सेंकती है। फिर धीरे-धीरे मामला बीतते वक्त के साथ शांत हो जाता है। राजनीतिक पार्टियों के लिए महिला सुरक्षा अब प्रमुख मुद्दों में से है। आज हर नेता अपनी जीत का परचम लहराने के लिए इसे राजनैतिक तूल देने का प्रयास तो करता है, लेकिन वास्तव में इस मसले पर ज्यादा कुछ करते नहीं। आज भी रेप मामलों में जमीन पर हालात नहीं बदले हैं।
लेकिन, हां देश में अब इस पर बात होने लगी है। बदलाव की उम्मीद जाग रही है, अब यंग जनरेशन की महिलायें खुद अपनी जंग लगने के लिए बेबाक उतरने लगी है।