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एंटरटेनमेंट के लिए सेक्स ही एकमात्र उपाय! कब तक चलेगा ये?

सेक्स का नाम सुनते ही बांछें खिल जाती हैं, है ना?

कोई बात नहीं, तुम्हारी ग़लती भी नहीं है, जब पूरे देश का यही हाल हो तो किसी एक को क्या कहना! सच ही तो है दोस्तों, पूरे देश को एक धागे में धर्म, जात या कुछ और बांधे ना बांधे, सेक्स ज़रूर बाँध के रखता है! यही तो है जो दिन भर में ख़ुशी के पल दो पल लाता है वरना एंटरटेनमेंट के नाम पर आम आदमी को मिल ही क्या रहा है?

ऐसा लगता है एंटरटेनमेंट के लिए सेक्स ही एकमात्र उपाय बचा है.

फिल्मों की बात करें तो साल में 3-4 ही ढंग की फिल्में आती हैं! बाक़ियों में सेक्स कूट-कूट के भरा होता है कि कहीं ग़लती से भी आप सेक्स करना भूल ना जाएँ! पहले अख़बारों में फ़िल्मों में हो रहे किसिंग सीन और हीरोइन के छोटे-छोटे कपड़ों का ज़िक्र हुआ करता था, अब वैसी ही ख़बरें टीवी के सीरियल के बारे में बनती हैं! मतलब सास-बहु ड्रामा के साथ देखने को मिलता है आशिक़ों का रोमांस जो धीरे-धीरे शर्म की सीमाएँ लांघ रहा है!

मुझे उस से भी कोई परेशानी नहीं है लेकिन बात यही है कि हमारे देश में आज भी एंटरटेनमेंट के नाम पर सेक्स ही बेचा जा रहा है, बस उसका रूप-रंग बदलता रहता है| उदाहरण के तौर पर बिग बॉस को लीजिये| उनके लड़ाई-झगड़े में अच्छी रेटिंग मिलती है लेकिन जैसे ही बात दो कंटेस्टेंट्स के रोमांस की हुई, उनके बीच चिपका-चिपकी की हुई, आग लग जाती है शो में, सब ऐसे आँखें फाड़-फाड़ के देखते हैं जैसे कोई पोर्न फ़िल्म शुरू होने वाली हो!

कोई बुराई नहीं है सेक्स देखने-करने में लेकिन उसके अलावा भी एंटरटेनमेंट नाम की चीज़ होती है जिस से आप मज़े भी लेते हैं, कुछ सीखते भी हैं! अमेरिका में, जहाँ से हम आधे से ज़्यादा रियलिटी शो कॉपी करते हैं, ऐसे बहुत से शो चलते हैं जिन में आपको मज़े-मज़े में बहुत कुछ सीखने, सोचने, करने का मौका मिलता है! यहाँ पर वैसे शो बनाने की बात की जाए तो कहा जाता है हमारी ऑडियंस इतनी मच्योर नहीं है, तैयार नहीं है समझदार शो देखने के लिए!

अरे यार, सेक्स दिखा के जेब भरने वालों, कुछ नया करने की हिम्मत भी तो होनी चाहिए बजाये सारा दोष ऑडियंस के मत्थे मढ़ दो! फिर कहते हैं हमारी जनसँख्या कितनी तेज़ी से बढ़ रही है!

अब ये कहना बेवकूफ़ी होगी कि इसका उपाय भी सरकार ही निकाले! ताली दोनों हाथों से बजती है, इसलिए ऑडियंस को चाहिए कि फूहड़ और एक ही ढर्रे (यानि कि सेक्स) पर चलने वाले प्रोग्राम्स को लात मारे और प्रोडूसर्स को चाहिए कि ऑडियंस को बेवकूफ़ या बच्चा ना समझते हुए ऐसे प्रोग्राम्स बनाएँ जिन्हें देखकर सच में मज़ा आये!

वैसे क्रिकेट लीग, फ़ुटबॉल लीग, कबड्डी लीग वगैरह ने एक कोशिश ज़रूर की है कुछ अलग तरह का एंटरटेनमेंट देने की, उम्मीद है इनकी सफ़लता और बढ़े ताकि हम सेक्स के अलावा भी एंटरटेन हो सकें!

अब सारे विश्व के बच्चे हमने थोड़े ही पैदा करने का ठेका लिया है, क्यों?

Deeksha Dudeja

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Deeksha Dudeja

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